होयसल राजवंश
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पाषाण युग (७०००–३००० ई.पू.)
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कांस्य युग (३०००–१३०० ई.पू.)
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लौह युग (१२००–२६ ई.पू.)
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मध्य साम्राज्य (२३० ई.पू.–१२०६ ईसवी)
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देर मध्ययुगीन युग (१२०६–१५९६ ईसवी)
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प्रारंभिक आधुनिक काल (१५२६–१८५८ ईसवी)
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औपनिवेशिक काल (१५०५–१९६१ ईसवी)
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श्रीलंका के राज्य
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राष्ट्र इतिहास |
क्षेत्रीय इतिहास |
होयसल प्राचीन दक्षिण भारत का एक यादव राजवंश था। यह देवगिरी के यादव राजवंश की एक शाखा थी। होयसल राजाओ के शिलालेखो में भी उनको यदुकुलतिलक कहा गया है। इसने दसवीं से चौदहवीं शताब्दी तक राज किया। उन्होने वर्तमान कर्नाटक के लगभग सम्पूर्ण भाग तथा तमिलनाडु के कावेरी नदी की उपजाऊ घाटी वाले हिस्से पर अपना अधिकार जमा लिया। इन्होंने ३१७ वर्ष राज किया। इनकी राजधानी पहले बेलूर थी पर बाद में स्थानांतरित होकर हालेबिदु हो गई।
शासक
[संपादित करें]- नृप काम २ (1026 - 1047)
- होयसल विनयादित्य (1047 - 1098)
- एरेयंग (1098 - 1102)
- वीर बल्लाल १ (1102 -1108)
- विष्णुवर्धन (1108 - 1152)
- नरसिंह १ (1152 – 1173)
- वीर बल्लाल २ (1173 – 1220)
- वीर नरसिंह २ (1220 – 1235)
- वीर सोमेश्वर (1235 – 1254)
- नरसिंह ३ (1254 – 1291)
- वीर बल्लाल ३ (1292 – 1343)
हरिहर राय १ ने इसके पश्चात विजयनगर साम्राज्य स्थापित किया।
कला एवं स्थापत्य
[संपादित करें]होयसल राजाओं का काल कला एवं स्थापत्य की उन्नति के लिये विख्यात है।
होयसल काल में मंदिर निर्माण की एक नई शैली का विकास हुआ। इन मंदिरों का निर्माण भवन के समान ऊँचे ठोस चबूतरे पर किया जाता था। चबूतरों तथा दीवारों पर हाथियों, अश्वारोहियों, हंसों, राक्षसों तथा पौराणिक कथाओं से संबंधित अनेक मूर्तियाँ बनाई गयी हैं। उनके द्वारा बनवाये गये सुन्दर मंदिरों के कई उदाहरण आज भी हलेबिड, बेलूर तथा श्रवणबेलगोला में प्राप्त होते हैं। होयसलों की राजधानी द्वारसमुद्र का आधुनिक नाम हलेबिड है, जो इस समय कर्नाटक राज्य में स्थित है। वहाँ के वर्तमान मंदिरों में होयसलेश्वर होयसलेश्वर का प्राचीन मंदिर सर्वाधिक प्रसिद्ध है, जिसका निर्माण विष्णुवर्धन के शासन काल में हुआ। यह 160 फुट लम्बा तथा 122 फुट चौड़ा है। इसमें शिखर नहीं मिलता। इसकी दीवारों पर अद्भुत मूर्तियाँ बनी हुई हैं, जिनमें देवताओं, मनुष्यों एवं पशु-पक्षियों आदि सबकी मूर्तियाँ हैं।
विष्णुवर्द्धन ने 1117 ई. में बेलूर में चेन्नाकेशव मंदिर का भी निर्माण करवाया था। वह 178 फुट लंबा तथा 156 फुट चौड़ा है। मंदिर के चारों ओर वेष्टिनी है, जिसमें तीन तोरण बने हैं। तोरण-द्वारों पर रामायण तथा महाभारत से लिये गये अनेक सुन्दर दृश्यों का अंकन हुआ है। मंदिर के भीतर भी कई मूर्तियाँ बनी हुयी हैं। इनमें सरस्वती देवी का नृत्य मुद्रा में बना मूर्ति-चित्र सर्वाधिक सुन्दर एवं चित्ताकर्षक है। होयसल मंदिर अपनी निर्माण-शैली, आकार-प्रकार एवं सुदृढता के लिये प्रसिद्ध हैं।
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