हरिभाऊ उपाध्याय
हरिभाऊ उपाध्याय (१८८२ - १९७२) भारत के प्रसिद्ध साहित्यसेवी एवं राष्ट्रकर्मी थे।
जीवनी
[संपादित करें]उज्जैन जिला भवरासा में, हरिभाऊ जी का जन्म हुआ |
स्वतंत्रता आंदोलन में इनको भी कारावास हुआ ||
रचनाएं इनकी है अनेक अनुवादित, मौलिक, सम्पादित |
भाषा त्रिगुणी है इनकी सरल, सस्कृत और मिश्रित ||
हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।
विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन् १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन् १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन् १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अधिक समय तक नहीं चला।
हरिभाऊ जी की मौलिक साहित्यसर्जसना "बापू के आश्रम में", "सर्वोदय की बुनियाद", "साधना के पथ पर", "भागवत धर्म", "मनन", "पुण्य स्मरण", "दुर्वादल" (कवितासंग्रह) तथा अन्य अनेक पुस्तकों के रूप में हिंदी संसार के सामने हैं। विविध पत्र-पत्रिकाओं में लेख तो बराबर ही लिखते रहे। इस अतिरक्ति इन्होंने जवाहरलाल जी की आत्मकथा "मेरी कहानी' तथा पट्टाभि सीतारामैया कृत "कांग्रेस का इतिहास' इत्यादि के अंग्रेजी से हिंदी अनुवाद भी प्रस्तुत किए।
गांधी जी से प्रभावित होकर ये राष्ट्रीय आंदोलन में कूद पड़े। पुरानी अजमेर रियासत में इन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद ये अजमेर के मुख्य मंत्री निर्वाचित हुए। हृदय से ये अत्यंत कोमल, परदु:खकातर व्यक्ति थे, किंतु सिद्धांतों पर कोई समझौता नहीं करते थे। राजस्थान की सब रियासतों को मिलाकर राजस्थान राज्य बना और इसके कई वर्षों बाद श्री मोहनलाल सुखाड़िया मुख्यमंत्री बने। उन्होंने अत्यंत आग्रहपूर्वक उपाध्याय जी को पहले वित्त फिर शिक्षामंत्री बनाया। बहुत दिनों तक ये इस पद पर रहे किंतु स्वास्थ्य ठीक न रहने के कारण अंतत: त्यागपत्र दे दिया।
उपाध्याय जी कई वर्षों तक राजस्थान की शासकीय साहित्य अकादमी के अध्यक्ष भी रहे। इन्होंने महिला शिक्षा सदन, हटूँडी (अजमेर) तथा सस्ता साहित्य मंडल की स्थापना की।
२५ अगस्त १९७२ को इनका देहांत हुआ।
रचनाएँ
[संपादित करें]स्वतंत्रता की ओर, बापू के आश्रम में, साधना के पथ पर, दूर्वादल, सर्वोदय की बुनियाद, मेरी जीवनी, युगधर्म, त्यागभूमि सरस्वती, हिन्दी नव जीवन।
भाषा व्यावहारिक और प्रवाहपूर्ण खड़बोली के साथ विदेशी शब्दों का प्रयोग।
शैली विवेचनात्मक, वर्णनात्मक तथा संवादात्मक।
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]Text is available under the CC BY-SA 4.0 license; additional terms may apply.
Images, videos and audio are available under their respective licenses.