शिशुनाग वंश
शिशुनाग राजवंश मगध पर शासन करने वाला चौथा राजवंश था। शिशुनाग राजवंश मे कुल छह राजाओं द्वारा ल. 413 से 345 ई.पू मे 68 वर्षों तक शासन किया था।[1] शिशुनाग राजवंश की स्थापना 413 ई.पू. में शिशुनाग के द्वारा हर्यक वंश के अंतिम शासक महाराजा नागदशक की हत्या करने के बाद की गई थी।[2] शिशुनाग वंश के राजाओं ने मगध की प्राचीन राजधानी गिरिव्रज (राजगृह) और वैशाली को अपनी राजधानी बना कर शासन किया था।
शिशुनाग राजवंश | |||||||||||||
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413 – 345 ई.पू | |||||||||||||
राजधानी | गिरिव्रज पाटलीपुत्र साथ ही वैशाली | ||||||||||||
प्रचलित भाषाएँ | संस्कृत (मुख्य) मागधी प्राकृत | ||||||||||||
धर्म | हिंदू धर्म साथ ही जैन धर्म और बौद्ध धर्म | ||||||||||||
सरकार | राजतन्त्र | ||||||||||||
सम्राट | |||||||||||||
• 413–395 ई.पू (प्रथम) | शिशुनाग | ||||||||||||
• 395–377 ई.पू (मुख्य) | कालाशोक | ||||||||||||
• 349–345 ई.पू (अंतिम) | महानन्दि | ||||||||||||
ऐतिहासिक युग | लौह युग | ||||||||||||
मुद्रा | पण | ||||||||||||
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अब जिस देश का हिस्सा है | भारत |
इतिहास
[संपादित करें]शिशुनाग
[संपादित करें]शिशुनाग (413–395 ई.पू.) मगध की गद्दी पर बैठा। महावंश के अनुसार वह लिच्छवि राजा के वेश्या पत्नी से उत्पन्न पुत्र था। पुराणों के अनुसार वह क्षत्रिय था।
शिशुनाग ने मगध से बंगाल की सीमा से मालवा तक विशाल भू-भाग पर अधिकार कर लिया। शिशुनाग ने सर्वप्रथम मगध के प्रबल प्रतिद्वन्दी राज्य अवन्ति को मिलाया। मगध की सीमा पश्चिम मालवा तक फैल गई और वत्स को मगध में मिला दिया। वत्स और अवन्ति के मगध में विलय से, पाटलिपुत्र को पश्चिमी देशों से व्यापारिक मार्ग के लिए रास्ता खुल गया। शिशुनाग एक शक्तिशाली शासक था जिसने गिरिव्रज के अलावा वैशाली नगर को भी अपनी राजधानी बनाया। 395/394 ई.पू. में इसकी मृत्यु हो गई।
कालाशोक (काकवर्ण)
[संपादित करें]कालाशोक (394–366 ई.पू.) शिशुनाग का पुत्र था जो उसकी मृत्यु के बाद मगध का शासक बना। महावंश में इसे कालाशोक तथा पुराणों में "'काकवर्ण'" कहा गया है। कालाशोक ने अपनी राजधानी को पुनः पाटलिपुत्र स्थानांतरित करवा दिया था। इसने 28 वर्षों तक शासन किया। कालाशोक के शासनकाल में ही बौद्ध धर्म की द्वितीय संगीति का आयोजन हुआ।
बाणभट्ट रचित हर्षचरित के अनुसार काकवर्ण को राजधानी पाटलिपुत्र में घूमते समय उनके ही पुत्र महापद्यनन्द ने चाकू मारकर हत्या कर दी थी। 366 ई.पू. कालाशोक की मृत्यु हो गई।
अन्य शासक और राजवंश का अंत
[संपादित करें]महाबोधिवंश के अनुसार कालाशोक के दस पुत्र थे, जिन्होंने मगध पर 22 वर्षों तक शासन किया।
महानन्दि
[संपादित करें]शिशुनाग वंश का अंतिम राजा महानन्दि था। 345/344 ई.पू. में उसके बेटे महापद्म नन्द द्वारा महानन्दि की हत्या कर साम्राज्य को कब्जा लिया और नंद वंश की नीव रखी। इसी के साथ शिशुनाग वंश का अन्त हो गया और नंद वंश का उदय हुआ।
शासकों की सूची
[संपादित करें]क्रम-संख्या | शासक | शासन अवधि (ई.पू) | शासन वर्ष | टिप्पणी |
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1. | महाराजा शिशुनाग | 413–395 | 18 | महाराजा नागदशक की हत्या करने के बाद राजवंश की स्थापना की। |
2. | महाराजा कालाशोक | 395–377 | 18 | महाराजा शिशुनाग का पुत्र |
3. | महाराजा क्षेमधर्मन | 377–365 | 12 | महाराजा कालाशोक का पुत्र |
4. | महाराजा क्षत्रौजस | 365–355 | 10 | महाराजा क्षेमधर्मन का पुत्र |
5. | महाराजा नंदिवर्धन | 355–349 | 6 | महाराजा क्षत्रौजस का पुत्र |
6. | महाराजा महानन्दि | 349–345 | 4 | वंश का अंतिम शासक, उसका साम्राज्य उसके बेटे महापद्म नन्द को कब्जा लिया। |
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]- मगध
- महाजनपद
- नंद वंश
- मगध के राजवंशों और शासकों की सूची
- भारत के राजवंशों और सम्राटों की सूची
- हिन्दू साम्राज्यों और राजवंशों की सूची
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Raychaudhuri 1972, पृ॰प॰ 193,201.
- ↑ Upinder Singh 2016, पृ॰ 272.
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