विजया राजे सिंधिया
साँचा:राजवंशी ज्ञानसन्दूक
विजया राजे सिंधिया (12 अक्टूबर 1919 – 25 जनवरी 2001), का जन्म मध्य प्रदेश के सागर जिले में राणा परिवार में ठाकुर महेंद्र सिंह एवं चूड़ा देवेश्वरी देवी के घर हुआ था। ये अपने पिता की सबसे बड़ी संतान थीं। इनके पिता जालौन जिले के डिप्टी कलक्टर हुआ करते थे।[1] इनके बचपन का नाम लेखा देवेश्वरी देवी था। उनकी माँ ठाकुर महेंद्र सिंह की दूसरी पत्नी थीं। वे नेपाली सेना के पूर्व कमांडर-इन-चीफ जनरल राजा खड्ग शमशेर जंग बहादुर राणा की बेटी थीं, जो नेपाल के राणा वंश के संस्थापक, जंग बहादुर कुंवर राणा के भतीजे थे। विजया राजे के जन्म के समय उनकी मृत्यु हो गई थी।
विवाह
[संपादित करें]सागर के नेपाल हाउस में पली बढ़ी लेखा देवेश्वरी के मुलाकात महाराजा जीवाजी राव से मुंबई के ताज होटल में हुई थी। महाराजा को लेखा पहली ही नजर में पसंद आ गई थीं। उन्होंने लेखा से राजकुमारी संबोधन के साथ बात-चीत की। उन्होंने अगले ही दिन लेखा को परिवार सहित मुंबई में सिंधिया परिवार के समुद्र महल में आमंत्रित किया। समुद्र महल में लेखा को महारानी की तरह परम्परागत मुजरे से सम्मानित किया गया। कुछ ही दिनों में महाराजा ने विवाह का प्रस्ताव लेखा के मौसा चन्दन सिंह के हाथों नेपाल हाउस भिजवा दिया गया। बाद में उन्होंने विवाह का एलान कर दिया। इस विवाह का सिंधिया परिवार ने और मराठा सरदारों ने विरोध किया था। शादी के बाद जब महाराजा जीवाजी राव अपनी महारानी को लेकर मौसा-मौसी सरदार आन्ग्रे से मिलवाने मुंबई ले गए, तो वहाँ भी विरोध झेलना पड़ा था। बाद में विजया राजे ने अपने व्यवहार और समर्पण से सिंधिया परिवार व मराठा सरदारों का विश्वास एवं सम्मान जीत लिया।[2]
राजनीति
[संपादित करें]विजया राजे सिंधिया जो कि ग्वालियर की राजमाता के रूप में लोकप्रिय थी, एक प्रमुख भारतीय राजशाही व्यक्तित्व के साथ-साथ एक राजनीतिक व्यक्तित्व भी थी। ब्रिटिश राज के दिनों में, 21 फरवरी 1941 को, ग्वालियर के आखिरी सत्ताधारी महाराजा जिवाजीराव सिंधिया की पत्नी के रूप में, वह राज्य के सर्वोच्च शाही हस्तियों में शामिल हो गईं। बाद में, भारत से राजशाही समाप्त होने पर वे राजनीति में उतर गई और कई बार भारतीय संसद के दोनों सदनों में चुनी गई। वह कई दशकों तक जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी की सक्रिय सदस्य भी रही। वे पहली बार 1957 में गुना से लोकसभा के लिए चुनी गईं। राजमाता विजयाराजे सिंधिया जनसंघ की नेता रह चुकी हैं। विजयाराजे सिंधिया ने 1957 में कांग्रेस से अपनी राजनीतिक पारी शुरू की थी। वह गुना लोकसभा सीट से सांसद चुनी गईं. लेकिन कांग्रेस में 10 साल बिताने के बाद पार्टी से उनका मोहभंग हो गया। विजयाराजे सिंधिया ने 1967 में जनसंघ जॉइन कर लिया। विजयाराजे सिंधिया की बदौलत ही ग्वालियर क्षेत्र में जनसंघ काफी मजबूत हुआ। वर्ष 1971 में पूरे देश में जबरदस्त इंदिरा लहर होने के बावजूद जनसंघ ने ग्वालियर क्षेत्र की तीन सीटों पर जीत हासिल की। विजयाराजे सिंधिया भिंड से, उनके पुत्र माधवराव सिंधिया गुना से और अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से सांसद बने।
विवाद
[संपादित करें]विजया राजे सती प्रथा जैसी दमनकारी प्रथाओं का समर्थन करने के लिए विवादों में घिर गईं और उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि महिलाओं को रंगीन कपड़े पहनने और अच्छा खाना खाने से परहेज करके विधवापन का शोक मनाना चाहिए।
परिवार
[संपादित करें]इनके चार पुत्रियाँ एवं एक पुत्र हुए।[3]
- पद्मावती राजे 'अक्कासाहेब' बर्मन (1942-64), जिनका विवाह त्रिपुरा के अंतिम शासक महाराजा किरीट बिकरम किशोर देब बर्मन से हुआ। पद्मा राजे सिंधिया जिवाजी राव और विजयाराजे सिंधिया की पहली संतान थीं। पद्मा का निधन पिता जिवाजी राव के निधन के तीन साल बाद ही हो गया। जिवाजी राव ने 1961 में जबकि पद्मा ने 1964 में अंतिम साँस ली।
- उषा राजे राणा (जन्म 1943), जिन्होंने अपने दूर के चचेरे भाई, पशुपति शमशेर जंग बहादुर राणा से विवाह किया, जो राणा वंश से संबंधित एक नेपाली राजनेता थे। वे देवयानी राणा और उर्वशी राणा के माता-पिता हैं।
- माधवराव सिंधिया (1945-2001), भारतीय राजनेता जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से संबंधित रहे और पूर्व केंद्रीय रेल मंत्री, विमानन और मानव संसाधन विकास, और ग्वालियर के दशमांश महाराजा थे। 2001 में हेलिकॉप्टर दुर्घटना में उनकी मौत हो गई। वह ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता थे। विजयाराजे सिंधिया और माधव राव सिंधिया के बीच संबंध बेहद खराब थे। विजयाराजे अपने बेटे से इतनी नाराज थीं कि 1985 में अपने हाथ से लिखी वसीयत में उन्होंने माधवराव सिंधिया को अंतिम संस्कार में शामिल होने से भी इनकार कर दिया था। हालाँकि 2001 में उनके निधन के बाद उनके बेटे माधवराव सिंधिया ने ही उनकी चिता को मुखाग्नी दी थी। विजयाराजे सिंधिया ने कहा था कि इमरजेंसी के दौरान उनके बेटे के सामने पुलिस ने उन्हें लाठियों से मारा था। उनका आरोप था कि माधवराव सिंधिया ने ही उन्हें गिरफ्तार करवाया था। राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के साथ-साथ मां-बेटे के बीच निजी रिश्ते भी इतने खराब हो गए थे कि विजयाराजे ने ग्वालियर के जयविलास पैलेस में रहने के लिए माधवराव सिंधिया से सालाना एक रूपये किराया भी माँग लिया था।[4]
- वसुंधरा राजे (जन्म 1953) भाजपा की राजनेता और राजस्थान की दो बार मुख्यमंत्री रहींं। उनका विवाह पूर्व में धौलपुर के महाराजा राणा हेमंत सिंह से 17 नवम्बर 1972 को हुआ था। वसुंधरा राजे सिंधिया के बेटे दुष्यंत भी बीजेपी में ही हैं। वह अभी राजस्थान की झालवाड़ सीट से सांसद हैं।
- यशोधरा राजे (जन्म 1954) भाजपा की राजनेता। उनकी पूर्व में अमेरिका के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ॰ सिद्धार्थ भंसाली से शादी हुई थी। यशोधरा 1977 में अमेरिका चली गईं। उनके तीन बच्चे हैं, लेकिन राजनीति में किसी ने दिलचस्पी नहीं दिखाई। उनके बड़े बेटे अक्षय भंसाली एमटीवी न्यूयॉर्क में प्रोड्यूसर हैं। वहीं, अभिषेक बिजनेस स्टूडेंट हैं, जबकि बेटी त्रिसाला अभी पढ़ाई कर रही हैं।[5] 1994 में जब यशोधरा भारत लौटीं तो उन्होंने माँ की इच्छा के मुताबिक, बीजेपी जॉइन की और 1998 में बीजेपी के ही टिकट पर चुनाव लड़ा। पाँच बार विधायक रह चुकी यशोधरा राजे सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान की सरकार में मंत्री भी रही हैं।
विजयाराजे सिंधिया की दो वसीयतें सामने आई थीं। एक 1985 और दूसरी 1999 की। वसीयत विवाद अब कोर्ट में चल रहा है।[6] प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी द्वारा राजमाता विजयाराजे सिंधिया जी की जयंती पर उनकी पावन स्मृति में 100 रुपये के स्मारक सिक्के का अनावरण कर राजमाता विजयाराजे सिंधिया को उनके महान व्यक्तित्व के लिए नमन करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की।[7]
inke 100th janm diwas pr PM Narendra Modi ji ne 100 rupee ka sikaa jari kiya .....
इन्हें भी देखें
[संपादित करें]सन्दर्भ
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