For faster navigation, this Iframe is preloading the Wikiwand page for यूरोपीय ज्ञानोदय.

यूरोपीय ज्ञानोदय

जो कुछ आप जानते हैं उसका प्रसार कीजिये। आप जो नहीं जानते उसकी खोज कीजिये। - Encyclopédie के १७७२ के संस्करण में आंकित

यूरोप में 1650 के दशक से लेकर 1780 के दशक तक की अवधि को प्रबोधन युग या ज्ञानोदय युग (Age of Enlightenment) कहते हैं। इस अवधि में पश्चिमी यूरोप के सांस्कृतिक एवं बौद्धिक वर्ग ने परम्परा से हटकर तर्क, विश्लेषण तथा वैयक्तिक स्वातंत्र्य पर जोर दिया। ज्ञानोदय ने कैथोलिक चर्च एवं समाज में गहरी पैठ बना चुकी अन्य संस्थाओं को चुनौती दी।

यूरोप में 17वीं-18वीं शताब्दी में हुए क्रांतिकारी परिवर्तनों के कारण इस काल को प्रबोधन, ज्ञानोदय अथवा विवेक का युग कहा गया और इसका आधार पुनर्जागरण, धर्मसुधार आंदोलन व वाणिज्यिक क्रांति ने तैयार कर दिया था। पुनर्जागरण काल में विकसित हुई वैज्ञानिक चेतना ने, तर्क और अन्वेषण की प्रवृत्ति ने 18वीं शताब्दी में परिपक्वता प्राप्त कर ली। वैज्ञानिक चिंतन की इस परिपक्व अवस्था को 'प्रबोधन' के नाम से जाना जाता है। प्रबोधनकालीन चिंतकों ने इस बात पर बल दिया कि इस भौतिक दुनिया और प्रकृति में होने वाली घटनाओं के पीछे किसी न किसी व्यवस्थित अपरिवर्तनशील और प्राकृतिक नियम का हाथ है। फ्रांसिस बेकन ने बताया कि विश्वास मजबूत करने के तीन साधन हैं- अनुभव, तर्क और प्रमाण; और इनमें सबसे अधिक शक्तिशाली प्रमाण है क्योंकि तर्क/अनुभव पर आधारित विश्वास स्थिर नहीं रहता।

विशेषताएँ

[संपादित करें]

ज्ञान को विज्ञान के साथ जोड़ना

[संपादित करें]

प्रबोधन के चिंतकों ने ज्ञान को प्राकृतिक विज्ञानों के साथ जोड़ दिया। पर्यववेक्षण, प्रयोग और आलोचनात्मक छानबीन की व्यवस्थित पद्धति का प्रयोग ज्ञानोदय के चिंतकों की नजर में सत्य तक पहुँचने का सक्षम आधार थी। उनके मुताबिक ज्ञान को प्रयोग एवं परीक्षा योग्य होना चाहिए। इसके पास ऐसे प्रमाण होना चाहिए जो बोधगम्य हो और मानव मस्तिष्क की पहुँच में हो। ज्ञान की इसी धारणा के आधार पर प्रबोधन ने पराभौतिक अनुमान और ज्ञान में विरोध बताया।

प्रयोग एवं परीक्षण पर बल

[संपादित करें]

मध्ययुग में ईसाईमत का प्रभाव इसलिए माना जाता था कि ईश्वर द्वारा निर्मित इस दुनिया को मनुष्य नहीं जान सकता। इस परिभाषा के मुताबिक यह दुनिया मानवीय बुद्धि के लिए अगम है। मनुष्य एवं बह्मण्ड के बारे में सत्य का केवल “उद्घाटन” हो सकता है इसलिए उसे केवल पवित्र पुस्तकों के जरिए जाना जा सकता है। “जहाँ ज्ञान का प्रकाश आलोकित नहीं होता वहाँ विश्वास की ज्योति से रास्ता सूझता है।” यही विश्वास मध्य युग की विशेषता थी। ज्ञानोदय ने इस नजरिए को खारिज कर दिया और दावा किया कि जिन चीजों को बुद्धि के प्रयोग व व्यवस्थित पर्यवेक्षण से नहीं जाना जा सकता, वे मायावी हैं। मनुष्य ब्रह्माण्ड के रहस्यों को पूरी तरह समझ सकता है। प्रकृति के बारे में हमें पवित्र पुस्तकों के माध्यम से नहीं बल्कि प्रयोगों एवं परीक्षाओं के माध्यम से बात करनी चाहिए।

कार्य-कारण संबंध का अध्ययन

[संपादित करें]

कार्य-कारण संबंध का अध्ययन विज्ञान संबंधी प्रबोधन चिन्तन का केन्द्रीय तत्व था। चिंतकों ने ऐसी पूर्ववर्ती घटना को चिन्हित करने की कोशिश की जिसका होना किसी परिघटना के पैदा होने के लिए अनिवार्य है और पूर्ववर्ती घटना के न होने के लिए अनिवार्य है और पूर्ववर्ती घटना के न होने से परवर्ती घटना नहीं पैदा होती। वस्तुतः कारणों की खोज प्राकृतिक एवं सामाजिक वातावरण पर मनुष्य का नियंत्रण बढ़ाने के साधन के रूप में की जाने लगी।

मानवतावाद

[संपादित करें]

प्रबोधन युग के चिंतकों ने मानव के खुशी और भलाई पर बल दिया। उसके अनुसार मनुष्य स्वभाव से ही विवेकशील और अच्छा है किन्तु स्वार्थी धर्माधिकारियों और उनके बनाए गए नियमों ने मनुष्य को भ्रष्ट कर दिया यदि मनुष्य अपने को इन स्वार्थी धर्माधिकारियों के चुंगल से मुक्त कर सके तो एक आदर्श समाज की स्थापना की जा सकती है। प्रबोधन के चिंतको का मानना था कि दुनिया मशीन की तरह है जिनका नियंत्रण व संचालन कुछ खास नियमों के तहत् होता है। फलस्वरूप उन्हें आशा बनी कि इस अंतर्निहित नियमों को खोज वे ब्रह्माण्ड के रहस्य को समझ लेंगे और फिर उस पर काबू पा लेंगे। इसका उद्देश्य व्यक्तियों को अपने पर्यावरण पर नियंत्रण स्थापित करने में समर्थ बना देना था ताकि वे प्राकृतिक शक्तियों की विध्वंसात्मक शक्तियों से अपनी रक्षा कर सके साथ ही साथ प्रकृति की ऊर्जा का मानव जाति के फायदे के लिए इस्तेमाल कर सके। न्यूटन ने प्रकाश के मौलिक रहस्यों का पता लगाया और प्रकाश विज्ञान की स्थापना की। बेंजामिन फ्रैंकलिन सहित कई लोगों ने विद्युत की खोज में अपना योगदान दिया।

प्रबोधनयुगीन चिंतकों ने कहा कि कोई परमसत्ता है और इस दुनिया के समस्त प्राणी उसी के बनाए हुए हैं और इन सबके साथ क्रूरता का नहीं बल्कि दयालुता का आचरण करना चाहिए। इसके अनुसार ईश्वर की तुलना उस घड़ी-निर्माता से की जा सकती है जो घड़ी के निर्माण के बाद यह निर्देश नहीं देता कि उसमें समय का निर्देशन कैसे हो। इस देववाद (Deism / प्राकृतिक धर्म) में रीति-रिवाज, अनुष्ठानों तथा अप्राकृतिक तत्त्वों का बहिष्कार कर दिया गया और सभी मनुष्यों की समानता और सहिष्णुता को नए आधार के रूप में ग्रहण किया गया। इस तरह प्राकृतिक धर्म मनुष्यता का धर्म था और यह धर्म लोगों में दूसरों की खिल्ली उड़ाने और नफरत पैदा करने का स्रोत नहीं बनेगा, ज्ञानोदय (प्रबोधन) के चिंतकों का ऐसा मानना था।

समानता एवं स्वतंत्रता पर बल

[संपादित करें]

ज्ञानोदय के चिंतक स्वतंत्रता व स्वच्छंदता के हिमायती थे। दिदरो ने व्यक्ति की स्वतंत्रता के पक्ष में तर्क देते हुए कहा- “प्रकृति ने किसी को भी दूसरों को आदेश देने का अधिकार नहीं दिया है, स्वतंत्रता दैवी दान है।” प्रबोधन के चिंतकों ने कहा कि सब मनुष्य एक समान उत्पन्न होते हैं उनमें जो विषमता पाई जाती है इसका कारण केवल यह है कि सबको शिक्षा एवं उन्नति का अवसर समान नहीं मिलता।

प्रकृति पर बल

[संपादित करें]

प्रबोधन ने प्रकृति के महत्व को प्रतिपादित किया। चिंतकों के अनुसार प्रकृति अपने सरल रूप में सौन्दर्य से परिपूर्ण है। प्रकृति की ओर लौट चलना एक प्रकार से स्वतंत्रता की ओर लौटने के बराबर है।

प्रबोधन युग के प्रमुख विचारक

[संपादित करें]
इमैनुएल काण्ट
  1. जॉन लॉक
  2. मांटेस्क्यू
  3. वाल्टेयर
  4. इमैनुएल काण्ट
  5. रूसो

प्रबोधनयुगीन चिंतन एवं पुनर्जागरण में अंतर

[संपादित करें]
  • (१) पुनर्जागरणकालीन मध्यवर्ग अभी आत्मविश्वास से युक्त नहीं था अतः वह इस बात पर बल देता था कि अतीत से प्राप्त ज्ञान ही श्रेष्ठ है और बुद्धि की बात करते हुए उदाहरण के रूप में ग्रीक एवं लैटिन साहित्य पर बल देता था। जबकि प्रबोधनकालीन मध्यवर्ग में शक्ति और आत्मविश्वास आ चुका था इस कारण उसने राजतंत्र की निरंकुशता एवं चर्च के आंडबर के खिलाफ आवाज उठाई और तर्क के माध्यम से अपनी बात व्यक्त की।
  • (२) पुनर्जागरण का बल ज्ञान के सैद्धांतिक पक्ष पर अधिक था जबकि प्रबोधन चिंतन का मानना था कि ज्ञान वही है जिसका परीक्षण किया जा सके और जो व्यावहारिक जीवन में उपयोग में लाया जा सके। इस तरह प्रबोधकालीन चिंतन का बल व्यावहारिक ज्ञान पर था।
  • (३) पुनर्जागरणकालीन वैज्ञानिक अन्वेषण निजी प्रयास का प्रतिफल था। दूसरी तरफ प्रबोधनकालीन वैज्ञानिक अन्वेषण तथा वैज्ञानिक क्रांति सामूहिक प्रयास का नतीजा था।

प्रबोधन का प्रभाव

[संपादित करें]
  • आधुनिक विश्व के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हुआ।
  • वैज्ञानिक एवं तकनीकी प्रगति ने औद्योगीकरण के नया युग का आधार तैयार किया।
  • निरकुश राजतंत्र पर चोट, फलतः लोकप्रिय सरकारों की स्थापना।
  • चिंतकों के द्वारा प्रतिपादित व्यक्ति स्वातंत्र्य की बात ने उदारवादी सरकार के निर्माण मार्ग का प्रशस्त किया।
  • व्यक्ति स्वतंत्र पैदा हुआ है जैसे नरि और व्यक्ति की स्वतंत्रता की मांग ने आर्थिक स्वतंत्रता को प्रोत्साहित किया। इस तरह वाणिज्यवादी, आर्थिक नीति से मुक्त अर्थव्यवस्था की ओर जाने की बात की जाने लगी और इसकी अभिव्यक्ति एडम स्मिथ के 'द वेल्थ ऑफ नेशन्स' (1776) में देखी जा सकती है। एडम स्मिथ का कहना था कि प्रकृति के नियम की तरह बाजार के भी अपने शाश्वत् नियम है। अतः इसमें बाह्य हस्तक्षेप की गुजाइश नहीं है और बाजार के ये शाश्वत् नियम मांग और पूर्ति पर आधारित है। इस तरह विश्व के समक्ष “मुक्त अर्थव्यवस्था” का सिद्धान्त प्रतिपादित हुआ जिसे वर्तमान में काफी महत्व दिया जाता है।
  • भारत में 19वीं सदी में चले सामाजिक सुधार आंदोलन पर भी इसका असर दिखाई पड़ता है। आधुनिकीकरण के सिद्धांतों ने समाजों को वर्गीकृत करने और आधुनिक लोकतांत्रिक शासन का मॉडल खड़ा करने के लिए अतीत और वर्तमान, परम्परा और आधुनिकता संबंधी ज्ञानोदय की समझदारी से मदद ली। समाज सुधार आंदोलनों ने ज्ञानोदय के मानवतावादी विचारों से प्रेरणा ली और धर्म तथा रीति-रिवाजों को मानव विवेक के सिद्धान्तों के अनुरूप ढालते की कोशिश की। उन्होंने पारंपरिक रस्मों रिवाजों की आलोचनात्मक परीक्षा की और उन रीतियों को बदलने की लड़ाई लड़ी जो समानता और सहिष्णुता के बुनियादी, सिद्धान्तों के खिलाफ थी। इस समाज सुधारकों पर प्रबोधन का इतना गहरा असर था कि उन्होंने अंगे्रजी शासन के साथ आने वाले नए विचारों का स्वागत किया और उन्हें विश्वास था कि जब कभी वे स्वशासन की मांग करेंगे उन्हें मिल जाएगा। हालांकि औपनिवेशिक शासन के शोषण चरित्र को सब लोग मानते हैं लेकिन प्रबोधनकालीन व्यक्ति की धारणा, वैज्ञानिक ज्ञान और स्वतंत्र उद्यम में तत्कालीन विश्वास आज भी लोकप्रिय कल्पना को प्रभावित करता है।
  • प्रबोधनकालीन प्रमुख चिंतक मध्यवर्गीय बुद्धिजीवी थे। यह चिंतन बुर्जुवा विश्वदृष्टि को अभिव्यक्ति करता है। अतः वे मध्यवर्ग के हितों से परिचालित थे।
  • ये बुद्धिजीवी कानून के शासन तथा विधि निर्माण पर बल देते थे परन्तु विधि निर्माण में मध्यवर्ग का ही वर्चस्व स्थापित करना चाहते थे।
  • इन चिंतकों की दृष्टि कुछ हद तक “यूटोपियन” प्रतीत होती हैं क्योंकि ये भविष्य के प्रति अतिरिक्त आशावादी दिखाई देते थे।
  • प्रबोधन चिंतको ने विज्ञान के संबंध में यह मत व्यक्त किया कि विज्ञान बेहतर दुनिया बना सकता है जिसमें व्यक्ति स्वतंत्रता और खुशी का आनंद उठा सकता है और विज्ञान का उपयोग मानव हित में किया जा सकता है। विज्ञान के प्रति उस विश्वास को 20वीं सदी के उत्तर्राद्ध में चुनौती मिली जब विज्ञान ने और तकनीकी विकास ने हिंसा और असमानता को बढ़ावा दिया।

इन्हें भी देखें

[संपादित करें]
{{bottomLinkPreText}} {{bottomLinkText}}
यूरोपीय ज्ञानोदय
Listen to this article

This browser is not supported by Wikiwand :(
Wikiwand requires a browser with modern capabilities in order to provide you with the best reading experience.
Please download and use one of the following browsers:

This article was just edited, click to reload
This article has been deleted on Wikipedia (Why?)

Back to homepage

Please click Add in the dialog above
Please click Allow in the top-left corner,
then click Install Now in the dialog
Please click Open in the download dialog,
then click Install
Please click the "Downloads" icon in the Safari toolbar, open the first download in the list,
then click Install
{{::$root.activation.text}}

Install Wikiwand

Install on Chrome Install on Firefox
Don't forget to rate us

Tell your friends about Wikiwand!

Gmail Facebook Twitter Link

Enjoying Wikiwand?

Tell your friends and spread the love:
Share on Gmail Share on Facebook Share on Twitter Share on Buffer

Our magic isn't perfect

You can help our automatic cover photo selection by reporting an unsuitable photo.

This photo is visually disturbing This photo is not a good choice

Thank you for helping!


Your input will affect cover photo selection, along with input from other users.

X

Get ready for Wikiwand 2.0 🎉! the new version arrives on September 1st! Don't want to wait?