बन्दी छोड़ दिवस
बन्दी छोड़ दिवस सिख त्योहार है जो कि दीपावली से कुछ दिन पहले पड़ता है। यह त्यौहार सिख समुदाय द्वारा ऐतिहासिक रूप से मनाया जाता है। यह त्योहार गुरू हरगोबिंद साहिब जी के संबंध में हरिमंदर साहिब बडी़ धूम धाम से मनाया जाता है। परंतु 20वीं सदी के नेताओं द्वारा बन्दी छोड़ दिवस को दिवाली के साथ जोड़ दिया गया है। इस नाम का सम्बद्ध गुरु हरगोबिन्द जी की रिहाई से है जिन्हें जहाँगीर द्वारा पहले धोखे से कैद किया गया पर बाद में साईं मियां मीर जी के कहने पर छोड़ने के लिए कहा गया पर गुरू साहिब ने मना कर दिया क्योंकि वह उन 52 राजपूत राजाओं को भी छुङवाना चाहते थे जो लम्बे समय से वहां कैद थे। फिर जहाँगीर ने शरत रखी जो राजा गुरु जी के जामे की कलियों को पकड़ बाहर आऐंगे उन्हें रिहा कर दिया जाएगा तो गुरू हरगोबिंद साहिब जी ने 52 कलियों वाला जामा (चोला) पहनकर सभी राजाओं को छुड़वा लिया|इस तरह तब से गुरु साहिब को बन्दी छोड़ दाता कहा जाने लगा।
विवरण- दिवाली के दिन सिख धर्म के अनुयायी ‘बंदी छोड़ दिवस’ के नाम से त्यौहार मनाते हैं। इस त्यौहार को मनाने के पीछे का इतिहास बड़ा रोचक है। जानकारी के मुताबिक सिख धर्म के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए बादशाह जहांगीर ने सिखों के छठवें गुरू हरगोविंद साहिब जी को बंदी बना लिया। उसने हरगोविंद साहिब जी को ग्वालियर के किले में कैद कर दिया जहां पहले से ही 52 हिन्दू राजा कैद थे। लेकिन संयोग से जब जहांगीर ने गुरू हरगोविंद साहिब जी को कैद किया, वह बहुत बीमार पड़ गया। काफी इलाज के बाद भी वह ठीक नहीं हो रहा था। तब बादशाह के काजी ने उसे सलाह दिया कि वह इसलिए बीमार पड़ गया है क्योंकि उसने एक सच्चे गुरु को कैद कर लिया है। अगर वह स्वस्थ होना चाहता है तो उसे गुरु हरगोविंद सिंह को तुरंत छोड़ देना चाहिए। कहते हैं कि अपने काजी की सलाह पर काम करते हुए जहांगीर ने तुरंत गुरु को छोड़ने का आदेश जारी कर दिया। लेकिन गुरु हरगोविंद सिंह जी ने अकेले रिहा होने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि वे जेल से बाहर तभी जायेंगे जब उनके साथ कैद सभी 52 हिन्दू राजाओं को भी रिहा किया जायेगा। गुरू जी का हठ देखते हुए उसे सभी राजाओं को छोड़ने का आदेश जारी करना पड़ा। लेकिन यह आदेश जारी करते समय भी जहांगीर ने एक शर्त रख दी। उसकी शर्त थी कि कैद से गुरू जी के साथ सिर्फ वही राजा बाहर जा सकेंगे जो सीधे गुरू जी का कोई अंग या कपड़ा पकड़े हुए होंगे। उसकी सोच थी कि एक साथ ज्यादा राजा गुरू जी को छू नहीं पायेंगे और इस तरह बहुत से राजा उसकी कैद में ही रह जायेंगे। जहांगीर की चालाकी देखते हुए गुरू जी ने एक विशेष कुरता सिलवाया जिसमें 52 कलियां बनी हुई थीं। इस तरह एक-एक कली को पकड़े हुए सभी 52 राजा जहांगीर की कैद से आजाद हो गये। जहांगीर की कैद से आज़ाद होने के बाद जब गुरू हरगोविंद सिंह जी वापस अमृतसर पहुंचे तब पूरे गुरुद्वारे में दीप जलाकर गुरू जी का स्वागत किया गया। कुछ समय पश्चात् इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में मनाये जाने का फैसला लिया गया
[संपादित करें]बन्दी छोड़ दिवस तब मनाया गया जब गुरु हरगोबिंद साहिब जी को ग्वालियर जेल से रिहा किया गया। नगर कीर्तन (एक सड़क जुलूस) और एक अखण्ड पाठ (गुरु ग्रंथ साहिब का निरंतर पठन) के अलावा, बंदी छोड़ दिवस आतिशबाजी के प्रदर्शन के साथ मनाया जाता है। श्री हरमंदिर साहिब के साथ-साथ पूरे परिसर को हजारों झिलमिलाती रोशनियों से सजाया जाता है। गुरुद्वारा निरंतर कीर्तन गायन और विशेष संगीतकारों का आयोजन करता है। सिख इस अवसर को गुरुद्वारों की यात्रा करने और अपने परिवार के साथ समय बिताने के लिए एक महत्वपूर्ण समय मानते हैं।[1]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ Nikky-Guninder Kaur Singh (2011). Sikhism: An Introduction. I.B.Tauris. पृ॰ 86. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-0-85773-549-2.
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