फर्ज़ (1967 फ़िल्म)
फर्ज़ | |
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फर्ज़ का पोस्टर | |
निर्देशक | रविकांत नगैच |
पटकथा | आरुद्र |
निर्माता | सुन्दरलाल नाहटा |
अभिनेता |
जितेन्द्र, बबीता, अरुणा ईरानी |
संगीतकार | लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल |
प्रदर्शन तिथि |
1967 |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
फर्ज़ 1967 में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। यह रविकांत नगैच द्वारा निर्देशित है। सुन्दरलाल नाहटा द्वारा इसका निर्माण किया गया। फिल्म में जितेन्द्र और बबीता मुख्य भूमिका में हैं। फिल्म का संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने दिया है।[1] यह 1966 की एक तेलुगू फ़िल्म की रीमेक है।
संक्षेप
[संपादित करें]गोपाल (जितेन्द्र) सीक्रेट एजेंट 116 है जिसको सीआईडी के प्रमुख द्वारा साथी सीक्रेट एजेंट 303 की हत्या का मामला सौंपा गया है। इस जांच के दौरान, गोपाल सुनीता (बबीता) से मिलता है और दोनों एक दूसरे के प्यार में पड़ जाते हैं। एजेंट 303 की हत्या के लिए जिम्मेदार गद्दार 303 की बहन कमला से मिलने गया था और उसे बताता है कि वह एक सीआईडी इंस्पेक्टर है और उसके भाई के मामले की जांच कर रहा है। 116 कमला से मिलने जाता है और 303 के चित्र को देखता है और स्टूडियो के फोटोग्राफर के नाम को नोट करता है। लेकिन कमला को यकीन है कि 116 ही उसके भाई का हत्यारा है। कमला को एक अन्य माफिया डॉन, दामोदर (सज्जन) द्वारा 116 को खत्म करने में मदद करने के लिए संपर्क किया जाता है जिसके लिये वह सहमत हो जाती है।
दामोदर सुनीता का पिता होता है। गोपाल को उनके बारे में संदेह होता है उसे पता चलता है कि उसके पिता एक गैंगस्टर हैं। सुनीता के जन्मदिन की पार्टी के दौरान, दामोदर अपने गुर्गे को 116 को मारने का कहता है लेकिन वह भाग निकलने में सफल होता है। 116 हिचकिचाहट से सुनीता को बताता है कि उसके पिता एक गैंगस्टर हैं। हृदयविदारक सुनीता अपने पिता का सामना करती है, जो उसे बताते हैं कि उन्हें अपराध का जीवन मजबूरन जीना पड़ रहा है और कोई अन्य व्यक्ति उन सभी को नियंत्रित करता है। 116 असली अपराधी की तलाश के लिए एक गगनचुंबी इमारत वाले अपार्टमेंट में जाता है जहां कमला (कंचना) रहती है। कमला मोहक नृत्य करती है और उसके पेय में कुछ नशीला पदार्थ मिला देती है। 116 ये जानता होता है और नशे में और बेहोश होने का नाटक करता है। गुंडे उसे सुनीता के साथ शहर के बाहरी इलाके में अपनी गुप्त जगह में ले जाते हैं। 116 सुनीता के साथ लड़ाई लड़ता है और एक वाहन में भाग जाता है। इस बीच, सीआईडी एजेंटों को एक पत्र का पता लगता है, जिससे राष्ट्र को अस्थिर करने के लिए चीनी साजिश के बारे में सुराग मिलते हैं। जिसका नेतृत्व सुप्रीमो नामक माओ की वर्दी पहने एक व्यक्ति करता है, जो केवल कुछ टूटे हुए अंग्रेजी वाक्य बोलता है। बाकी की फिल्म भारत के खिलाफ एक विदेशी साजिश को विफल करने के 116 के प्रयासों का अनुसरण करती है।
मुख्य कलाकार
[संपादित करें]- जितेन्द्र ― गोपाल / एजेंट 116
- बबीता ― सुनीता
- सज्जन ― दामोदर
- आग़ा ― शांताराम
- मुकरी ― राजू
- अरुणा ईरानी ― बसंती
- डेविड ― सीक्रेट सर्विस के प्रमुख
- कंचना ― कमला
- रजनाला कालेस्वर राव ― सुप्रीमो
संगीत
[संपादित करें]सभी गीत आनंद बख्शी द्वारा लिखित; सारा संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल द्वारा रचित।
क्र॰ | शीर्षक | गायक | अवधि |
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1. | "आजा आजा मेरे पास" | आशा भोंसले | 4:23 |
2. | "हम तो तेरे आशिक़ हैं" | मुकेश, लता मंगेशकर | 6:03 |
3. | "देखों देखों जी सोचों जी" | लता मंगेशकर | 4:41 |
4. | "बार बार दिन ये आयें" | मोहम्मद रफ़ी | 7:07 |
5. | "मस्त बहारों का मैं आशिक़" | मोहम्मद रफ़ी | 6:20 |
6. | "तुमसे हो हसीना" | मोहम्मद रफ़ी, सुमन कल्याणपुर | 5:55 |
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ "बार बार दिन ये आए... ये हैं जितेन्द्र के 15 सदाबहार नग़मे". अमर उजाला. अभिगमन तिथि 25 नवम्बर 2021.
बाहरी कड़ियाँ
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