नवटोल, सरिसबपाही
नवटोल , सरिसब-पाही (पश्चिमी) पंचायत, भारतीय राज्य बिहार के मधुबनी जिले में पंडौल प्रखंड में स्थित एक छोटा सा गाँव है। यह राष्ट्रीय राजमार्ग 57 गंगौली चौक से 1.5 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। यह गाँव 26° 14'13.43" N 86° 09'12.59" E पर स्थित है। इसकी कुल जनसंख्या लगभग 13,000 से 17,000 के बीच है। इस गाँव में मैथिली, हिन्दी, अंग्रेजी जानने वाले व लिखने-पढ़ने वाले लोग और मैथिली यहाँ की मुख्य भाषा है। यहाँ की लिपि, देवनागरी एव्ं मिथिलाक्षर(तिरहुता) है। यहाँ एक सरकारी माध्यमिक विद्यालय है, यह एक संकुल संसाधन केन्द्र भी है। इस गाँव में होने वाले प्रतिवर्ष शारदीय नवरात्र का आयोजन काफी प्राचीन है।
पौराणिक वर्णन
[संपादित करें]यह क्षेत्र सारस्वत साधना का सिद्धपीठ, ब्राह्मण लोगों का विद्यामन्दिर, मिथिला के न्याय-विशेष का प्रधान केन्द्र था। सरिसबपाही जिसका प्राचीन नाम सिद्धार्थ क्षेत्र है, का उल्लेख सम्पूर्ण स्कन्द पुराण के नागर-खंड में (अध्याय-५२,श्लोक -६-७) में मिलता है। कपिलमुनि के आश्रम से दो योजन' (ल. १६ मील) दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण) में सिद्धार्थ-क्षेत्र अवस्थित है। वराहपुराण के अनुसार भगवान कृष्ण के अग्रज श्री बलभद्र का अपने मिथिला प्रवास के समय सिद्धार्थ क्षेत्र में "सरिसब की खेती करनेवाली भूमि पर " गदा शिक्षा का अखाडा था। स्कन्द पुराण के नागर खण्ड में एक सौ (१००) अध्याय का मिथिलाखण्ड मिलता है जिसमें बलभद्र का मिथिला वास, पुराण का एक प्रसिद्ध कथा है। श्री बलभद्र जब भगवान कृष्ण से रूठकर मिथिला आये, जहाँ मिथिला के राजा जनक ने पूर्ण सत्कार से अपने यहाँ स्थान दिया एव्ं तीन वर्ष तक मिथिला में निवास किया। इसका वर्णन 'विष्णुपुराण' (चतुर्थ अंश, अध्याय-१३) और हरिवंश पुराण (अध्याय-४०) में मिलता है। वाराहपुराण में (अध्याय-१६०, श्लोक -४४-४५) उल्लेख है कि श्री बलभद्र के उपास्या देवी माँ सिद्धेश्वरी थी। बलभद्र ने अपने मिथिला वास के समय सरिसब में माता सिद्धेश्वरी की स्थापना की और सिद्धेश्वर शिव मंदिर को स्थापित किया, माता सिद्धेश्वरी की भव्य म्ंदिर एव्ं शिव म्ंदिर, आज भी सरिसब-पाही में स्थित है।
सरिसब को मैथिली में उस तेलहन को कहते हैं,जिसे संस्कृत में गौरसर्षप कहा जाता है, जिसका पर्यायवाची शब्द सिद्धार्थ होता है। इस भूभाग में अतिप्राचीन काल में सरिसब (पीली सरसों) का वन होता था जिसके पीले फूलों की सुग्ंध से पुरा क्षेत्र उद्भासित रहता था। सरिसब-पाही के बारे में एक अतिप्राचीन कहानी है कि किसी समय यह एक विशाल नगर का मध्य भाग था,जिसे अमरावती नगर कहा जाता रहा था। जो उत्तर में भगवतीपुर (जिला-मधुबनी) से लेकर दक्षिण में बाजितपुर(जिला-दरभ्ंगा) तक बसा हुआ था। जिसका पूर्वी भाग अभी उजान गाँव (जिला-दरभ्ंगा) जाना जाता है एवं इसका पश्चिमी भाग ,जमसम(जिला-मधुबनी) तक माना गया है। अभी भी सरिसब-पाही में सातो डीह (भूमि), "यहाँं कुम्हारों की वस्ती थी" एव्ं सातो गाछी (आम का बगीचा) प्रसिद्ध स्थान है जहाँ से मिट्टी के टूटे हुए बर्तन के अंश मिलते है। यहाँ एक पुरानी नदी की सूखी हुइ स्थान मिलती है, जिसे अमरावती नदी का अंश कहा जाता है।
प्राचीनकाल में जब अमरावती नदी विकसित थी तब सरिसबपाही एक मुख्य व्यापारिक स्थान हुआ करता था, जिसे हाटे(बाजार) कहा जाता था। अभी इसे हाटी कहा जाता है। जब यहाँ व्यापार चरम पर था उस समय लगभग १३२० ई० से १३२६ ई० के मध्य बाहरी आक्रमणकारियों के द्वारा यहाँ के व्यापारिक स्थान को बर्बाद कर दिया एवं हाट को लूट लिया गया। और यहाँ के व्यापारी को मार दिया गया एवं जो बच गये वो यहाँ से पलायन कर गये। सरिसबपाही में ऐसे अभी दो स्थान काफी ऊँचें है जो इस बात की पुष्टि करते है कि यह एक व्यापारिक प्रतिष्ठान था ठठेरी टोल और दर्जी टोल। ये दोनो टोल नदी के पूर्वी तट में स्थित हैं। दर्जी टोल से पश्चिम लगभग २०० मीटर की दूरी पर सिद्धेश्वर महादेव का मंदिर स्थित है। इसी मंदिर में पूजा करने के बाद व्यापारी, व्यापार का प्रारंभ करते थे। यहाँं के तटीय क्षेत्र से मिट्टी के सिक्के, ताम्बे के सिक्के मिलना भी इस बात का प्रमाण है। उस समय यहाँ मिनाक्षी नाम की एक राज-नर्तकी (जिसे स्थानीय लोग मनकी बोलते थे) रहती थी। उसने सरिसबपाही की संस्कृति एवं मिथिला की संस्कृति और शिक्षा को बचाने के लिये अपने आपको नृत्य कौशल से नष्ट कर दी थी। एवं यहाँ के बहुत ही प्रकार के रहस्य की पुस्तकें जो गलत हाथों में जाने के बाद मानवता के लिये हानिकारक हो सकती थी,उसे इसी अमरावती नदी में विसर्जित कर दी थी।मनकी डीह(मिनाक्षी का वास स्थान) अभी भी हाटी गाँव में स्थित है। यह घटना लगभग ११६० ई० से ११७० ई० के मध्य का है। जब बंगाल में सेन वंस का राजा बल्लाल सेन का अाधिपत्य था। इन्होने उस समय मिथिला के कुछ प्रमुख क्षेत्रों को अपने साम्राज्य में मिलाया था जिसमें सरिसबपाही भी एक क्षेत्र था जो आर्थिक दृष्टिकोण से परिपूर्ण था। LSSO Malley के द्वारा १९०७ ई० में जो Indian Gazette published हुआ था जिसमें भी सरिसबपाही को प्रमुख व्यापार केन्द्र प्रस्तुत किया गया है। सरिसबपाही में विशेष प्रकार का नमक, ऊस (एक विशेष प्रकार की मिट्टी) एवं नमक से बारूद जैसी वस्तु बनायी जाती थी, सिक्की (एक विशेष प्रकार की घास) की बनी वस्तु, ध्वनि उत्पन्न करने वाले वस्तु आदि का व्यापार इसी व्यापारिक प्रतिष्ठान से किया जाता था।यहाँ अभी भी घंटी आदि का निर्माण किया जाता है।इसी नदी के किनारे पर गंगौली गाँंव में चौक से कोरियानी तक (कोइर जाति कि बस्ती ) बहुत ही बड़ा मेला का आयोजन किया जाता था। इस मेला का का अंतिम आयोजन 1897 ई० में किया गया क्योंकि उस समय तक नदी लगभग सूख चुकी थी। इस मेले की ऐसी मान्यता थी की अमरावती नदी में स्नान करने से शरीर को रोगों से मुक्ति मिलती है एवं जीवन दिर्घायु होता है,शरीर में कान्ति आती है। सरिसबपाही में प्रार्ंभ से ही माँ सरस्वती की असीम कृपा रही है। उल्लेखित है कि यहाँ से साहित्य, स्ंस्कृत,न्याय,सांख्य,दर्शन,योग,तंत्र,आदि के विद्वान एवं ज्ञाता भारत में अपने ज्ञान का प्रकाश प्रकाशित कर चुके है। नवटोल गाँव भी एक नदी के किनारे बसी है यह नदी लगभग २०० से २५० वर्ष पहले तक जीवन्त थी। यह भी अमरावती नदी की एक धारा थी जिसे धनिया नदी कहा जाता था। यह नवटोल गाँव के पश्चिम से होते हुए राजे,पुरानी मनीगाछी की ओर चली गयी है, जिसका प्रवाह पथ देखा जा सकता है।अभी भी नवटोल के व्यक्ति इसे नदी ही कहते है। नवटोल के पूर्व दिशा में एक ऐतिहासिक तालाब स्थित है जिसके बारे में अनेक कहानियाँ प्रचलित है। जिसे हरूआही कहा जाता है। नवटोल गाँंव बसने के पूर्व से ही यह तालाब यहाँं पर स्थित है। नवटोल गाँव की उत्पति से पहले, एक गाँव हरूआही से पूरब की ओर और अमरावती नदी से पश्चिम में थी, यह कुम्हारों की बस्ती थी। और दूसरी बस्ती नवटोल से पश्चिम में थी, जिसे तेलिया कहा जाता है जहॉ तेली जाति के लोग रहा करते थे। नवटोल गाँव में बसने वाले प्रथम व्यक्ति थे कमलाकान्त ठाकुर जिन्होने अपने वासस्थान गंगौली को त्याग कर संतान की अपेक्षा से नवटोल में अपना नया वासस्थान का निर्माण किया। सरिसबपाही से १.५ किलोमीटर पश्चिम-द्क्षिण कोण में एव्ं नवटोल से पूर्व-उत्तर कोण में प्रथम मीमांसा ज्ञाता कुमारिल भट्ट का प्रसिद्ध स्थान भट्ट्पूरा गाँव अवस्थित है।
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