नर-नारायण अवतार
नर नारायण को हिन्दू धर्म में भगवानविष्णू का चतुर्थ अवतार माना जाता है। मान्यता है कि इस अवतार में भगवान विष्णु ने नर और नारायण रूपी जुड़वां संतों के रूप में अवतार लिया था। इसी रूप में उन्होंने बद्रीनाथ तीर्थ में तपस्या की थी। नर-नारायण के हाथों में हंस, चरणों में चक्र और वक्ष:स्थल में श्रीवत्स के चिन्ह थे। उर्वशी उनकी पुत्री मानी जाती है।
नर नारायण अवतार | |
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धर्म , तप और ब्रह्मचर्य के देवता | |
स्वामीनारायण मंदिर में भगवान नर नारायण | |
अन्य नाम | स्वामीनारायण |
संबंध | दशावतार, विष्णु, पर ब्रह्म, परमात्मा, परमेश्वर, विष्णु के चतुर्थ अवतार |
निवासस्थान | वैकुंठ, समुद्र |
मंत्र | ॐ नर नारायणय नमः।। |
अस्त्र | सुदर्शन चक्र, पाञ्चजन्य शंख, कमल पुष्प और कौमोदकी गदा, |
युद्ध | हयग्रीवासुर वध |
जीवनसाथी | लक्ष्मी |
सवारी | नर नारायण |
शास्त्र | भागवत पुराण, विष्णु पुराण, मत्स्य पुराण |
त्यौहार | स्वामीनारायण जयंती |
नर नारायण का जन्म और माता पिता
[संपादित करें]ब्रह्मा जी के मानस पुत्र धर्म की पत्नी रूचि के गर्भ से श्री हरि ने नर और नारायण नाम के दो महान तपस्वियों के रूप में धरती पर जन्म लिया। इनके जन्म का कारण ही संसार में सुख और शांति का विस्तार करना था।
तपस्या का पथ और स्थली
[संपादित करें]जन्म के साथ ही उनका धर्म, साधना और भक्ति में ध्यान बढ़ता ही गया। इसके बाद अपनी माता से आज्ञा लेकर वे उत्तराखंड में पवित्र स्थली बदरीवन और केदारवन में तपस्या करने चले गए। उसी बदरीवन में आज बद्रीकाश्रम बना है, जिसे बद्रीनाथ भी कहा जाता है।
भगवान विष्णु ने धर्म की महिमा बढ़ाने के लिए अनेक लीलाएं की हैं। इन्हीं में से एक लीला में उन्होंने नर नारायण रूप लिया। इस अवतार को लेकर वे तपस्या, साधना के मार्ग पर ईश्वर के प्रतिरूप को भक्तों के लिए धरती पर जीवंत कर गये।
केदारनाथ और बद्रीनाथ को स्थापित किया
[संपादित करें]माना जाता है कि करीब 8 हजार ईसा पूर्व अपनी कई हजार सालों की महान तपस्या से इन दोनों भाइयों ने भगवान शिव को अत्यंत प्रसन्न किया। तब भगवान शिवजी ने उनसे प्रसन्न होकर दर्शन देने के पश्चात वरदान मांगने को कहा। लेकिन, जन लोक कल्याण के लिए नर नारायण ने अपने लिए कुछ नहीं मांगा और शिवजी से विनती की वे इस स्थान में पार्थिव शिवलिंग के रूप में हमेशा रहें। इस पर शिवजी ने उनकी विनती स्वीकार कर ली और आज जिस केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के हम दर्शन करते है, उसी में शिवजी का आज भी वास है।
वहीं इसके आस पास मंदिर का निर्माण पांडवों ने करवाया। बाद में इसका दोबारा निर्माण आदि शंकराचार्य ने करवाया। इसके बाद राजा भोज ने भी यहां पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया था। इसके बाद इन दोनों भाइयो ने बदरीवन में जाकर भगवान विष्णु के मंदिर बद्रीनाथ में प्रतिमा की स्थापना की।
आज भी कर रहे हैं नर नारायण पर्वत के रूप में तपस्या
[संपादित करें]देवभूमि उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा में बद्रीनाथ धाम अलकनंदा नदी के किनारे पर स्थित है। आज भी इस जगह नर नारायण के नाम के दो पर्वत मौजूद है। मान्यता के अनुसार वे आज भी परमात्मा की तपस्या में लीन हैं।
महाभारत में अर्जुन के रूप में जन्म
[संपादित करें]आपने भी सुना ही होगा कि द्वापर युग में यानि महाभारत काल में श्री कृष्ण को पांडवो में सबसे प्रिय अर्जुन ही थे, लेकिन क्यों? तो इसका उत्तर नर नारायण से ही जुड़ा हुआ है। दरअसल माना जाता है कि पांडवो के घर नर ने ही अर्जुन के रूप में जन्म लिया था जबकि कृष्ण तो नारायण के ही अवतार थे। माना जाता है कि इसी कारण कृष्ण के परम सखा, शिष्य, भाई आदि अर्जुन ही थे।
स्वामीनारायण रूप में अवतार
[संपादित करें]माना जाता है की कलयुग में अधर्म का नाश करने के लिए भगवान नर नारायण ने स्वामीनारायण के रूप मे अवतार लिया था। भगवान स्वामीनारायण ने अधर्म का नाश करके धर्म का प्रवर्तन किया था। इसी लिए आज भीस्वामीनारायण सम्प्रदाय में नर नारायण भगवान का विशेष महत्व है।
दशावतार | ||
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अन्य अवतार | ||
*उत्तर भारत में बुद्ध और दक्षिण भारत में बलराम को विष्णु का नौवां अवता माना जाता है। |
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[संपादित करें]संदर्भ
[संपादित करें]Patrika
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