दिल दिया दर्द लिया
दिल दिया दर्द लिया | |
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फ़िल्म का पोस्टर | |
निर्देशक | अब्दुल रशीद करदार |
लेखक | कौशल भारती |
निर्माता | करदार प्रोडक्शन्स |
अभिनेता | दिलीप कुमार, वहीदा रहमान, प्राण |
छायाकार | द्वारका दिवेचा |
संपादक | ऍम. ऍस. हाजी |
संगीतकार | नौशाद |
प्रदर्शन तिथि |
1966 |
लम्बाई |
१६९ मिनट |
देश | भारत |
भाषा | हिन्दी |
दिल दिया दर्द लिया १९६६ में बनी हिन्दी भाषा की फिल्म है। यह फ़िल्म अंग्रेज़ी की लेखिका ऍमिली ब्रॉन्टी के उपन्यास वदरिंग हाइट्स पर आधारित है। इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार हैं दिलीप कुमार, वहीदा रहमान तथा प्राण।
संक्षेप
[संपादित करें]एक गाँव में एक सरल स्वभाव का ठाकुर (सप्रू) रहता है। उसके एक लड़का रमेश (प्राण) और एक लड़की रूपा (वहीदा रहमान) हैं। वह एक ग़रीब अनाथ बच्चे शंकर (दिलीप कुमार) की भी परवरिश करता है। रमेश शंकर से नफ़रत करता है और बात-बात पर उसको मारता-पीटता रहता है। समय के साथ ठाकुर मर जाता है और बच्चे बड़े हो जाते हैं।
रमेश के शंकर पर ज़ुल्म जारी रहते हैं लेकिन शंकर यह सब कुछ चुपचाप सहन कर लेता है क्योंकि वह रूपा से प्यार करता है। जब रमेश को इस बात का पता चलता है कि वह दोनों आपस में शादी करना चाहते हैं तो वह शंकर को बुरी तरह पिटवाकर टीले से नीचे फिंकवा देता है और रूपा की शादी एक अमीर खानदान में सतीश (रहमान) से तय करा देता है। इस बीच रमेश एक तवायफ़ तारा के यहाँ आता जाता रहता है और उसे नशे की आदत भी लग जाती है। इसी आदत के चलते वह अपनी सारी जायदाद तारा के नाम कर देता है और पैसे-पैसे को मोहताज हो जाता है।
कुछ सालों बाद अब एक रईस हो चुका शंकर बेलापुर का राजा बनकर आता है। वह रमेश को माफ़ करने और रूपा का हाथ माँगने के मक़सद से आया होता है। लेकिन वहाँ पहुँचकर वह देखता है कि सब कुछ बदल गया है। हालांकि रमेश अब भी शंकर से उतनी ही नफ़रत करता है लेकिन शंकर को पता चलता है कि रूपा की तो शादी सतीश के साथ तय हो चुकी है। उसका प्यार अब नफ़रत में बदल जाता है और वह रमेश, रूपा, सतीश और सतीश की बहन माला से बदला लेने की ठान लेता है। वहा रूपा को बुरा-भला कहता है और रूपा को नीचा दिखाने के लिए माला से प्यार का नाटक भी करता है। वह उन सबसे बदला लेने के लिए अलग-अलग योजनाएँ बनाता है, लेकिन अंत में प्यार की जीत होती है।
चरित्र
[संपादित करें]- दिलीप कुमार - शंकर
- वहीदा रहमान - रूपा
- प्राण - रमेश
- रहमान - सतीश
- श्यामा - माला
- सज्जन - मनसाराम
- रानी - तारा
- जॉनी वॉकर - मुरलीधर
- उमा देवी (टुन टुन) - मुरलीधर की पत्नी
- सप्रू - ठाकुर
- मुराद - बेलापुर के महाराजा
संगीत
[संपादित करें]इस फ़िल्म में गीतकार हैं शकील बदायूँनी और संगीतकार हैं नौशाद। इस फ़िल्म के गाने अपने समय में काफ़ी लोकप्रिय रहे थे।
# | गीत | गायक | लम्बाई |
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१ | "कोई सागर दिल को बहलाता नहीं" | मोहम्मद रफ़ी | ०३:३५ |
२ | "फिर तेरी कहानी याद आई" | लता मंगेशकर | ०३:३० |
३ | "सावन आये या न आये" | मोहम्मद रफ़ी, आशा भोंसले | ०३:५३ |
४ | "दिलरुबा मैंने तेरे प्यार में" | मोहम्मद रफ़ी | ०४:०६ |
५ | "ग़ुज़रें हैं आज इश्क़ में" | मोहम्मद रफ़ी | ०३:४९ |
६ | "दिल हारने वाले और भी हैं" | आशा भोंसले | ०५:२३ |
७ | "हाय हाय रसिया तू बड़ा बेदर्दी" | आशा भोंसले | ०३:११ |
८ | "क्या रंग-ए-महफ़िल है दिलदारम" | लता मंगेशकर | ०३:४४ |
नामांकन और पुरस्कार
[संपादित करें]यह फ़िल्म १९६७ में फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार में दो श्रेणियों में नामांकित हुयी थी। फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ अभिनेता पुरस्कार (दिलीप कुमार) और फ़िल्मफ़ेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता पुरस्कार (प्राण)।
बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]Text is available under the CC BY-SA 4.0 license; additional terms may apply.
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