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तोता

तोता
Parrot
कुछ तोता जातियाँ
वैज्ञानिक वर्गीकरण
जगत: जंतु
संघ: रज्जुकी (Chordata)
वर्ग: पक्षी (Aves)
गण: सिटासिफोर्मीस (Psittaciformes)
वाग्लर, 1830
अधिकुल
तोते का भौगोलिक विस्तार (सभी जातियाँ)

तोता (Parrot) लगभग 399 जातियों के पक्षियों का एक जीववैज्ञानिक गण है। इसका वैज्ञानिक नाम सिटासिफोर्मीस (Psittaciformes) है, जिसके अधीन तोते की इन अनुमानित 398 जातियों को 92 वंशों में संगठित करा जाता है। तोता जातियों को तीन अधिकुलों में भी विभाजित करा जाता है: सिटाकोईडेआ ("सच्चे" तोते, Psittacoidea), कैकाटुओइडेआ (कौकटू, Cacatuoidea) और स्ट्रिगोपोइडेआ (न्यू ज़ीलैण्ड तोते, Strigopoidea)। तोते मुख्य रूप से पृथ्वी के ऊष्णकटिबन्धीय और उपोष्णकटिबन्धीय क्षेत्रों में रहते हैं, और इनकी सबसे अधिक विविधता दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलेशिया में पाई जाती हैं। लगभग एक-तिहाई तोता जातियाँ विलुप्ति के संकट में हैं। तोते अपनी शक्तिशाली घुमावदार चोंच, अक्सर रंग-बिरंगे पंखों, खड़े होने की अकड़ी व सीधी मुद्रा और मोटी टांगों से आसानी से पहचाने जाते हैं। इनमें नर और मादा को अलग बताना कठिन होता है।[1][2][3][4]

गुलाबी-माला तोता

यह बहुत सुंदर पक्षी है और मनुष्यों की बोली की नकल बखूबी कर लेता है। यह सिलीबीज द्वीप से सालोमन द्वीप तक के क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी कई जातियाँ हैं। लेकिन इनमें हरा तोता (Ring Necked Parakett), जो अफ्रीका में गैंबिया के मुहाने (mouth of Gambia) से लेकर, लाल सागर होता हुआ भारत, बर्मा और टेनासरिम (Tenasserim) तक फैला हुआ है, सबसे अधिक प्रसिद्ध है। यह हरे रंग का 10-12 इंच लंबा पक्षी है, जिसके गले पर लाल कंठा होता है। तोते को मनुष्यों ने संभवत: सबसे पहले पालतू किया और आज तक ये शौक के साधन बने हुए हैं।

कुछ तोते जातोयों के मुख्य निवास स्थान आस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड हैं, जहाँ के अनेक प्रकार के रंगीन तोते प्रति वर्ष पकड़कर विदेशों में भेजे जाते हैं। इनमें काकातुआ और मैकॉ (Macaw) आदि बड़े कद के सुंदर तथा रंगीन एवं बजरीका, रोज़ेला और काकाटील छोटे कद के होते हैं। काकातुआ सफेद और मैकॉ नीले रंग का होता है। बजरीका नीले, पीले, हरे सभी रंग के चित्तीदार होते हैं, जो देखने में बहुत सुंदर लगते हैं। रोज़ेला भी कम सुंदर नहीं होता। इसका सिर लाल, सीना पीला और डैना तथा दुम नीली रहती है। काकाटील का शरीर ऊदा और सफेद तथा सिर पीला रहता है। हमारे देश में भी तोतों की परबत्ता, ढ़ेलहरा, टुइयाँ, मदनगोर आदि कई जातियाँ हैं, लेकिन ये सब प्राय: हरे रंग की होती हैं।

तोते झुंड में रहनेवाले पक्षी हैं, जिनके नर मादा एक जैसे होते हैं। इनकी उड़ान नीची और लहरदार, लेकिन तेज होती है। इनका मुख्य भोजन फल और तरकारी है, जिसे ये अपने पंजों से पकड़कर खाते रहते हैं। यह पक्षियों के लिये अनोखी बात है। तोते की बोली कड़ी और कर्कश होती है, लेकिन इनमें से कुछ सिखाए जाने पर मनुष्यों की बोली की हूबहू नकल कर लेते हैं। इसके लिये अफ्रीका का स्लेटी तोता (Psittorcu erithacus) सबसे प्रसिद्ध है। तोता एकपत्नीव्रती पक्षी है। इसकी मादा पेड़ के कोटर या तनों में सुराख काटकर 1 से 12 तक सफेद अंडे देती है।[5]

यद्यपि तोता अत्यधिक लोकप्रिय पक्षी है, परंतु यह प्रसिद्धि है कि तोता आपने पालने वाले के प्रति भी बेवफा होता है। कहा जाता है कि तोता चाहे कितने दिनों का पालतू क्यों न हो, पर जब एक बार पिंजरे के बाहर निकल जाता है, तब वह फिर अपने पिंजरे या मालिक की तरफ देखता तक नहीं। इसी आधार पर यह मुहावरा बना है 'तोते की तरह आँखें फेरना या बदलना' अर्थात् बहुत बेमुरौवत होना। हालाँकि स्वाभाविक रूप से यह तोते की अत्यधिक स्वतंत्रताप्रियता का प्रमाण ही है। पूर्वोक्त अर्थ में ही 'तोता-चश्म' पद भी प्रचलित है, अर्थात् जिसकी आँखों में तोते की तरह लिहाज या संकोच का पूर्ण अभाव हो; बेवफा, बेमुरौवत।[6]

प्रचलित नामान्तर 'सुआ' एवं 'पोपट'

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वैसे तो शब्दकोशों में तोते के अनेक पर्यायवाची शब्द मिलते हैं, परंतु 'तोता' शब्द के अतिरिक्त हिन्दी भाषी क्षेत्र में सर्वाधिक प्रचलित एक ही शब्द है 'सुग्गा' जो संस्कृत के मूल शब्द 'शुक' का तद्भव रूप है। संस्कृत साहित्य से लेकर पालि, प्राकृत, अपभ्रंश एवं आधुनिक हिन्दी तक में तोते के लिए 'शुक' के अतिरिक्त या तो 'कीर' शब्द का प्रयोग हुआ है या फिर 'शुक' के तद्भव रूप 'सुआ' एवं 'सुग्गा' का।

दक्षिण-पश्चिम भारत में तोते के लिए बहुप्रचलित शब्द है 'पोपट'। इस शब्द का प्रयोग हिन्दी भाषी क्षेत्रों में पहले से प्रायः नहीं होते रहा है। इसका एक बड़ा प्रमाण यह भी है कि हिन्दी के प्राचीन से अर्वाचीन साहित्यिक ग्रन्थों में तो इस 'पोपट' शब्द का अभाव है ही; हिन्दी के सर्वाधिक प्रामाणिक एवं विस्तृत आकार-प्रकार वाले कोशों 'मानक हिन्दी कोश' (पाँच खण्डों में; संपादक- आचार्य रामचन्द्र वर्मा; हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग) एवं 'वृहत् हिन्दी कोश' (ज्ञानमण्डल लिमिटेड, वाराणसी) में तो यह शब्द नदारद है ही, हिन्दी के सबसे बड़े कोश 'हिंदी शब्द सागर' के संशोधित-परिवर्धित संस्करण (11 खण्डों में; नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी) में भी यह शब्द नहीं दिया गया है। भदंत आनंद कौशल्यायन संपादित 'पालि-हिंदी कोश' में भी 'पोपट' शब्द नहीं है। यह शब्द मूलतः मराठी है या गुजराती यह तो स्पष्टतः पता नहीं चलता है, परन्तु मराठी, गुजराती एवं राजस्थानी में तोते के लिए 'पोपट' शब्द का प्रयोग बहुतायत से होता है। 'हिन्दी-मराठी कोश' में तोते के लिए एकमात्र मराठी शब्द 'पोपट' ही दिया गया है।[7] गुजराती-हिन्दी कोश में भी 'पोपट' शब्द तो तोते के अर्थ में है ही, पोपट से बनने वाले विशेषण 'पोपटियु' एवं पोपटी' (अर्थ= तोते के रंग का) का प्रयोग भी मिलता है।[8] 'बृहत् राजस्थांनी सबद कोस' में भी 'पोपट' शब्द है। राजस्थानी के 'कान्हड़ दे प्रबन्ध' एवं 'विनय कुसुमांजली' जैसे ग्रन्थों में भी 'पोपट' शब्द का स्पष्ट प्रयोग मिलता है।[9]

इन्हें भी देखें

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सन्दर्भ

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  1. Cameron, Matt (2007). Cockatoos. Collingwood, VIC, Australia: CSIRO Publishing. ISBN 978-0-643-09232-7.
  2. Olah, George; Butchart, Stuart H. M.; Symes, Andy; Guzmán, Iliana Medina; Cunningham, Ross; Brightsmith, Donald J.; Heinsohn, Robert (2016). "Ecological and socio-economic factors affecting extinction risk in parrots". Biodiversity and Conservation. 25 (2): 205–223. doi:10.1007/s10531-015-1036-z. ISSN 0960-3115. S2CID 17282072.
  3. Bradford, Alina (2014). "Parrot Facts: Habits, Habitats and Species". LiveScience. Retrieved 7 August 2016.
  4. Steadman, D. (2006). Extinction and Biogeography in Tropical Pacific Birds. University of Chicago Press. pp. 342–351. ISBN 978-0-226-77142-7.
  5. हिंदी विश्वकोश, खंड-5, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण-1965, पृष्ठ-429.
  6. मानक हिन्दी कोश, दूसरा खण्ड, संपादक- रामचन्द्र वर्मा, हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग, तृतीय संस्करण-2007, पृष्ठ-581.
  7. हिन्दी-मराठी शब्दकोश, संपादक- गो०प० नेने, श्रीपाद जोशी, महाराष्ट्र राष्ट्रभाषा सभा, पुणे, तृतीय संस्करण-1956, पृष्ठ-310.
  8. गुजराती-हिन्दी कोश, गुजरात विद्यापीठ, अहमदाबाद, संस्करण-1992, पृष्ठ-315.
  9. बृहत् राजस्थांनी सबद कोस, तृतीय खण्ड, प्रथम जिल्द, जोधपुर, प्रथम संस्करण-1970, पृष्ठ-2606.
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