कुम्भकर्ण
कुम्भकर्ण रामायण के एक प्रमुख पात्र का नाम है। वह ऋषि व्रिश्रवा और राक्षसी कैकसी का पुत्र तथा लंका के राजा रावण का छोटा भाई था। कुम्भ अर्थात घड़ा और कर्ण अर्थात कान, बचपन से ही बड़े कान होने के कारण इसका नाम कुम्भकर्ण रखा गया था।
यह विभीषण और शूर्पनखा का बड़ा भाई था। बचपन से ही इसके अन्दर बहुत बल था, इतना कि एक बार में यह जितना भोजन करता था उतना कई नगरों के प्राणी मिलकर भी नहीं कर सकते थे। जब इनके पिता ने तीनों भाइयों को तपस्या करने के लिए कहा और भगवान ब्रह्मा जी ने इन्हें दर्शन दिए तो देवताओं ने माता सरस्वती से प्रार्थना की जब कुम्भकर्ण वरदान माँगे तो वे उसकी जिव्हा पर बैठ जाएँ। परिणाम स्वरूप जब कुम्भकर्ण इन्द्रासन माँगने लगा तो उसके मुख से इन्द्रासन की जगह निद्रासन (सोते रहने का वरदान) निकला जिसे ब्रह्मा जी ने पूरा कर दिया परन्तु बाद में जब कुम्भकर्ण को इसका पश्चाताप हुआ तो ब्रह्मा जी ने इसकी अवधि घटा कर एक दिन कर दिया जिसके कारण यह छः महीने तक सोता रहता फिर एक दिन के लिए उठता और फिर छः महीने के लिए सो जाता,परन्तु ब्रह्मा जी ने इसे सचेत किया कि यदि कोई इसे बलपूर्वक उठाएगा तो वही दिन कुम्भकर्ण का अन्तिम दिन होगा।
कुम्भकर्ण दिखने में बहुत ही ज्यादा बलशाली और भीमकाय था और आम लोगो से कई गुना ज्यादा भोजन करता था जिसका वर्णन रामचरितमानस में भी किया गया है| पुराणों के अनुसार कुम्भकर्ण अपने पूर्व जन्म में असुरराज हिरण्यकशिपु (रावण का पूर्व जन्म) का छोटा भाई हिरण्याक्ष था उस जन्म में उसका वध भगवान विष्णु के वाराह अवतार द्वारा हुआ था।
दोहा
[संपादित करें]- राम रूप गुन सुमिरत मगन भयउ छन एक।
- रावन मागेउ कोटि घट मद अरु महिष अनेक॥63॥
(श्री रामचन्द्रजी के रूप और गुणों को स्मरण करके वह एक क्षण के लिए प्रेम में मग्न हो गया। फिर रावण से करोड़ों घड़े मदिरा और अनेकों भैंसे मँगवाए)
चौपाई
[संपादित करें]- महिषखाइ करि मदिरा पाना। गर्जा बज्राघात समाना॥
- कुंभकरन दुर्मद रन रंगा। चला दुर्ग तजि सेन न संगा॥1॥
(भैंसे खाकर और मदिरा पीकर वह वज्रघात (बिजली गिरने) के समान गरजा। मद से चूर रण के उत्साह से पूर्ण कुंभकर्ण किला छोड़कर चला। सेना भी साथ नहीं ली)
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- ↑ शर्मा, पंडित रामप्रकाश (2016-04-25). "रामचरित मानस चोपाई - कुम्भकर्ण kumbhkaran in ramayan". Panditbooking (अंग्रेज़ी में). मूल से 10 सितंबर 2019 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2020-04-21.
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