कनक भवन
कनक भवन | |
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धर्म संबंधी जानकारी | |
सम्बद्धता | हिन्दू धर्म |
प्रोविंस | उत्तर प्रदेश |
देवता | राम, सीता |
त्यौहार | विवाह पंचमी, राम नवमी, दीपावली, दशहरा |
अवस्थिति जानकारी | |
अवस्थिति | अयोध्या |
ज़िला | अयोध्या जिला |
देश | भारत |
भौगोलिक निर्देशांक | 26°47′53″N 82°11′57″E / 26.7980174°N 82.1992155°Eनिर्देशांक: 26°47′53″N 82°11′57″E / 26.7980174°N 82.1992155°E |
वास्तु विवरण | |
प्रकार | हिन्दू |
निर्माता | चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य 2431ई, समुद्रगुप्त 387 ई॰, महारानी वृषभान कुंवारी 1891ई॰ |
वेबसाइट | |
kanak-bhavan-temple.com |
कनक भवन अयोध्या में राम जन्म भूमि, रामकोट के उत्तर-पूर्व में है।[1] कनक भवन अयोध्या के बेहतरीन और प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। ऐसा माना जाता है कि यह भवन भगवान श्री राम जी से विवाह के तुरंत बाद महारानीकैकेयी जी द्वारा देवी सीता जी को उपहार में दिया गया था। यह देवी सीता और भगवान राम का निजी महल है। मान्यताओं के अनुसार मूल कनक भवन के टूट-फूट जाने के बाद द्वापर युग में स्वयं श्री कृष्ण जी द्वारा इसे पुनः निर्मित किया गया।[2] माना जाता है कि मध्य काल में इसे विक्रमादित्य ने इसका जीर्णोद्धार करवाया।[3] बाद में इसे ओरछा की रानी वृषभानु कुंवरि द्वारा पुनर्निर्मित किया गया जो आज भी उपस्थित है।[4][5] गर्भगृह में स्थापित मुख्य मूर्तियां भगवान राम और देवी सीता की हैं।
इतिहास
[संपादित करें]इस मंदिर को एक विशाल महल के रूप में अभिकल्पित किया गया है। इस मंदिर का स्थापत्य राजस्थान व बुंदेलखंड के सुंदर महलों से मिलता जुलता है | इसका इतिहास की मान्यता मूलतः त्रेता युग तक जाती है जब इसे श्री राम की सौतेली माँ ने उनकी पत्नी सीता को विवाह उपरान्त मुँह दिखाई के रूप में दिया था । कालान्तर में यह जीर्ण-शीर्ण होते हुए पूर्णतः नष्ट हो गया तथा इसका कई बार पुनर्निर्माण व जीर्णोद्धार हुआ| पहला पुनर्निर्माण राम के पुत्र कुश द्वारा द्वापर युग के प्रारंभिक काल में किया गया| इसके बाद द्वापर युग के मध्य में राजा ऋषभ देव द्वारा पुनः बनवाया गया तथा श्रीकृष्ण द्वारा भी कलि युग के पूर्व काल (लगभग 614 ई.पू.) इस प्राचीन स्थान की यात्रा किए जाने की मान्यता है।[6]
वर्तमान युग में इसे सबसे पहले चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य द्वारा युधिष्ठिर काल 2431 ई.पू में बनवाया गया। तत्पश्चात इसका समुद्रगुप्त द्वारा 387 ई॰ में किया गया। मंदिर को नवाब सालारजंग-द्वितीय गाज़ी द्वारा 1027 ई॰ में नष्ट किया गया तथा इसका पुनरोद्धार बुंदेला राजपूत ओरछा व बुंदेलखंड के टीकमगढ़ के महाराजा महाराजा श्री प्रताप सिंह जू देव, बुंदेला एवं उनकी पत्नी महारानी वृषभान कुंवारी द्वारा 1891 में करवाया गया। यह निर्माण गुरु पौष की वैशाख शुक्ल की षष्ठी को सम्पन्न हुआ।
यहाँ तीन जोड़ी मूर्तियाँ हैं तथा तीनों ही भगवान राम और सीता की हैं। सबसे बड़ी मूर्ति की स्थापना महारानी वृषभान कुंवारी द्वारा की गई थी। ऐसी मान्यता है कि मंदिर के निर्माण व स्थापना के पीछे मुख्य शक्ति वही थीं। इस मूर्ति जोड़ी के दाईं ओर कुछ कम ऊंचाई की मूर्ति स्थापित है। कहते हैं कि उसे राजा विक्रमादित्य ने स्थापित किया था। ये मूर्ति उन्हीं के द्वारा इसी प्राचीन मन्दिर से सुरक्षित रखी गयी थी, जब इस पर आक्रमण हुए थे। तीसरी सबसे छोटी जोड़ी के बारे में कहा जाता है कि भगवान कृष्ण ने उस महिला सन्यासिनी को भेंट की थी जो इस स्थान पर भगवान राम की आराधना कर रही थी।
श्रीकृष्ण ने उस महिला को निर्देश दिया कि वह देह त्याग उपरान्त इन मूर्तियों को भी अपने साथ समाधिस्थ कर ले क्योंकि ये बाद में पवित्र स्थान के रूप में चिन्हित किया जाएगा। तब एक महान राजा कलियुग में इस स्थान पर एक विशाल मंदिर निर्माण करवाएगा।| कालान्तर में महाराज विक्रमादित्य ने इस मंदिर के निर्माण के लिए नींव की खुदाई करवाई तो उसे ये प्राचीन मूर्तियाँ मिलीं | इन मूर्तियों ने उस महान राजा को अपने द्वारा निर्मित इस विशाल मंदिर में स्थापित किए जाने हेतु गर्भ गृह के उचित स्थान के चयन में सहायता की।
वर्तमान मंदिर निर्मान के समय, तीनों जोड़ियाँ गर्भ गृह में प्रतिष्ठित की गईं। अब इन तीनों ही जोड़ियों को देखा जा सकता है।[1]
आवागमन
[संपादित करें]= वायु मार्ग
[संपादित करें]निकटतम हवाई अड्डा है जो की श्री अयोध्या धाम मैं श्री राम जन्मभूमि के नव निर्मित भव्य मंदिर से केवल 11 किलोमीटर दूर है। फैजाबाद गोरखपुर हवाई अड्डे से लगभग 158 किलोमीटर, प्रयागराज हवाई अड्डे से 172 किलोमीटर और वाराणसी हवाई अड्डे से 224 किलोमीटर दूर है।[7]
रेल मार्ग
[संपादित करें]फैजाबाद व अयोध्या जिले के प्रमुख रेलवे स्टेशन लगभग सभी प्रमुख महानगरों एवं नगरों से भली प्रकार से जुड़े हैं। फैजाबाद से रेल मार्ग द्वारा लखनऊ से 128 कि.मी., गोरखपुर से 171 कि.मी., प्रयागराज से 157 कि.मी. एवं वाराणसी से 196 कि.मी. है। अयोध्या रेल मार्ग द्वारा लखनऊ से 135 कि.मी., गोरखपुर से 164 कि.मी., प्रयागराज से 164 कि.मी. एवं वाराणासी से 189 कि.मी. है।[1]
सड़क मार्ग
[संपादित करें]राज्य सड़क परिवहन निगम की बस सेवाएं दिन भर घंटे उपलब्ध रहती हैं, एवं सभी छोटे बड़े शहरों से यहां पहुंचना सुलभ है। फैजाबाद से बस मार्ग द्वारा प्रमुख शहरों से दूरी: लखनऊ से 152 कि.मी., गोरखपुर से 158 कि.मी., इलाहाबाद से 172 कि.मी. एवं वाराणासी से 224 कि.मी. है। अयोध्या बस मार्ग द्वारा लखनऊ से 172 कि.मी., गोरखपुर से 138 कि.मी., प्रयागराज से 192 कि.मी. एवं वाराणासी से 244 कि.मी. है।[1]
सन्दर्भ
[संपादित करें]- ↑ अ आ इ ई "कनक भवन | जिला अयोध्या - उत्तर प्रदेश सरकार | India". ayodhya.nic.in. अभिगमन तिथि 29 नवम्बर 2021.
- ↑ "अद्भुत है अयोध्या के कनक भवन की कहानी, भगवान श्रीकृष्ण जी व माता कैकेयी जी से जुड़ी है ये कथा". amarujala.com. अमर उजाला. अभिगमन तिथि 29 नवम्बर 2021.
- ↑ GANGASHETTY, RAMESH (2019). THIRTHA YATRA: A GUIDE TO HOLY TEMPLES AND THIRTHA KSHETRAS IN INDIA (अंग्रेज़ी में). Notion Press. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-1-68466-134-3. अभिगमन तिथि 29 नवम्बर 2021.
- ↑ ओमप्रकाश, दुबे. "रामराजा मंदिर की हूबहू प्रतिकृति है अयोध्या का कनक भवन मंदिर". अमर उजाला. अभिगमन तिथि 29 नवम्बर 2021.
- ↑ "रामभक्ति के फलक पर भी रही हैं कई 'मीरा'". दैनिक जागरण. अभिगमन तिथि 29 नवम्बर 2021.
- ↑ "एनारआई विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार का आधिकारिक जालस्थल, भारत| UPNRI". nri.up.gov.in. मूल से 30 मार्च 2022 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 2022-03-28.
- ↑ "कनक भवन | जिला अयोध्या - उत्तर प्रदेश सरकार | India". अभिगमन तिथि 2022-03-28.
बाहरी कड़ी
[संपादित करें]- कनक भवन गैलरी, अयोध्या जिले की वेबसाइट पर।
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