अलेक्सान्द्र निकोलायेविच अर्ख़ान्गेल्स्की
अलेक्सांदर अर्ख़ान्गेल्स्की रूस के आलोचक, साहित्यिक समीक्षक तथा पत्रकार हैं। इनका जन्म १९६२ में मॉस्को में हुआ। १९८४ में मॉस्को राजकीय अध्यापन संस्थान की रूसी भाषा और साहित्य फैकल्टी से एम.ए. करने के बाद इन्होंने १९८८ में पीएच.डी. की। १९८० से १९८४ के बीच मॉस्को के पॉयनियर भवन से काम किया, फिर १९८५ में सोवियत रेडियो और टेलिविजन प्रसारण के बाल विभाग में संपादक रहे। १९८६ से १९९२ तक साहित्यिक पत्रिका 'द्रुज़्बा नरोदफ' (जातीय मैत्री) के संपादकीय विभाग में रहे। इस बीच १९८८-८९ में एक वर्ष तक उन्होंने 'वापरोसी फिलासोफी' (दर्शन के सवाल) नामक पत्रिका के संपादकीय विभाग में भी काम किया।
१९९१ में ब्रेमन विश्वविद्यालय में और फिर १९९४ में बर्लिन की इंडिपेंडेंट युनिवर्सिटी में प्रशिक्षण पाया। १९९२ से १९९८ तक अलेक्सांदर अर्ख़ान्गेल्स्की ने जिनेवा विश्वविद्यालय में लेक्चर दिए। १९९८ से २००१ तक मास्को के चायकोवस्की संगीत महाविद्यालय में प्रोफेसर रहे। 'इज़्वेस्तिया' समाचार पत्र में शुरू में समीक्षक रहे, बाद में सहायक संपादक (२००१-२००४) हो गए और उसके बाद कॉलम लिखते रहे। १९९२-९३ में रूसी टेलिविजन के 'आर.टी.आर.' चैनल पर 'प्रोतिफ तिचेनिया' (धारा के विरुद्ध) कार्यक्रम के प्रस्तोता रहे। उसके बाद २००२ में 'रस्सिया' चैनल पर 'ख्रनोग्राफ' (ऐतिहासिक घटनाओं का लेखा) कार्यक्रम प्रस्तुत किया। सन २००२ से ही 'कुल्तूरा' टेलिचैनल पर 'तेम व्रेमनेम' (उसे दौर में) नामक सूचनात्मक-विश्लेषणात्मक कार्यक्रम की रचना से लेकर उसकी प्रस्तुति तक के सब काम किए। अलेक्सांदर अर्ख़ान्गेल्स्की विश्व के विशालतम पुस्तकालय नामक डाक्यूमेंट्री फिल्मों की एक पूरी सीरीज़ के रचयिता हैं और अब 'उच्च अर्थशास्त्र स्कूल में प्रोफेसर हैं।
आजकल अलेक्सांदर अर्ख़ान्गेल्स्की एक आलोचक और पत्रकार के रूप में 'सिवोदनिया', 'व्रेम्या एम.एन.', 'इज़्वेस्तिया' और 'लितरातूरनया गज़्येता' नामक समाचार पत्रों में और 'वापरोसी लितरातूरी' (साहित्य के सवाल), म्युनिख से प्रकाशित होने वाली 'स्त्राना इ मीर' (देश और दुनिया) तथा 'ज़्नाम्या' (परचम) जैसी पत्रिकाओं में लेख लिखते हैं। इनके बहुत से लेख अंग्रेज़ी, जर्मन, फ्रांसिसी, यहूदी और फिन भाषाओं में अनूदित होकर प्रकाशित हो चुके हैं। अलेक्सांदर अर्ख़ान्गेल्स्की की पुस्तक 'अलेक्सांदर प्रथम' का अनुवाद भी फ्रांसिसी भाषा में हुआ है और वह पुस्तक पेरिस में भी प्रकाशित हुई है। कभी-कभी वे अर्ख़ीप अंगेलेविच के नाम से भी लिखते हैं। अलेक्सांदर अर्ख़ान्गेल्स्की को बहुत से पुरस्कार मिल चुके हैं और वे स्वयं भी अनेक पुरस्कारों के निर्णायक मंडलों के सदस्य हैं।
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