अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ
वृन्दावन का इस्कॉन मन्दिर | |
चित्र:ISKCON official logo.jpg इस्कॉन का प्रतीक चिह्न | |
संक्षेपाक्षर | इस्कॉन(ISKCON) |
---|---|
स्थापना | 13 जुलाई 1966न्यूयॉर्क शहर, अमरीका |
संस्थापक | आचार्य भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद |
प्रकार | धार्मिक संगठन |
वैधानिक स्थिति | सक्रिय |
उद्देश्य | शिक्षा, धार्मिक सचेतन, धार्मिक अध्ययन, आध्यात्म |
मुख्यालय | मायापुर, पश्चिम बंगाल, भारत |
स्थान |
|
निर्देशांक | 23°16′N 88°14′E / 23.26°N 88.23°Eनिर्देशांक: 23°16′N 88°14′E / 23.26°N 88.23°E |
सेवित क्षेत्र क्षेत्र |
सम्पूर्ण विश्व |
मुख्य अंग |
शासी निकाय आयोग (गवर्निंग बॉडी कमिशन) |
संबद्धता | हिन्दू धर्म (गौड़ीय वैष्णव धर्म) |
जालस्थल |
iskcon |
अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ या इस्कॉन (अंग्रेज़ी: International Society for Krishna Consciousness - ISKCON; उच्चारण : इंटर्नैशनल् सोसाईटी फ़ॉर क्रिश्ना कॉनशियस्नेस् -इस्कॉन), को "हरे कृष्ण आन्दोलन" के नाम से भी जाना जाता है। इसे १९६६ में न्यूयॉर्क नगर में भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपाद ने प्रारम्भ किया था। देश-विदेश में इसके अनेक मंदिर और विद्यालय है।
स्थापना एवं प्रसार
[संपादित करें]कृष्ण भक्ति में लीन इस अंतरराष्ट्रीय सोसायटी की स्थापना श्रीकृष्णकृपा श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदान्त स्वामी प्रभुपादजी ने सन् १९६६ में न्यू यॉर्क सिटी में की थी। गुरु भक्ति सिद्धांत सरस्वती गोस्वामी ने प्रभुपाद महाराज से कहा तुम युवा हो, तेजस्वी हो, कृष्ण भक्ति का विदेश में प्रचार-प्रसार करों। आदेश का पालन करने के लिए उन्होंने ५९ वर्ष की आयु में संन्यास ले लिया और गुरु आज्ञा पूर्ण करने का प्रयास करने लगे। अथक प्रयासों के बाद सत्तर वर्ष की आयु में न्यूयॉर्क में कृष्णभवनामृत संघ की स्थापना की। न्यूयॉर्क से प्रारंभ हुई कृष्ण भक्ति की निर्मल धारा शीघ्र ही विश्व के कोने-कोने में बहने लगी। कई देश हरे कृष्णा के पावन भजन से गुंजायमान होने लगे।
अपने साधारण नियम और सभी जाति-धर्म के प्रति समभाव के चलते इस मंदिर के अनुयायीयों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। हर वह व्यक्ति जो कृष्ण में लीन होना चाहता है, उनका यह मंदिर स्वागत करता है। स्वामी प्रभुपादजी के अथक प्रयासों के कारण दस वर्ष के अल्प समय में ही समूचे विश्व में १०८ मंदिरों का निर्माण हो चुका था। इस समय इस्कॉन समूह के लगभग ४०० से अधिक मंदिरों की स्थापना हो चुकी है।
महामन्त्र
[संपादित करें]नियम एवं सिद्धान्त
[संपादित करें]पूरी दुनिया में इतने अधिक अनुयायी होने का कारण यहाँ मिलने वाली असीम शांति है। इसी शांति की तलाश में पूरब की गीता पश्चिम के लोगों के सिर चढ़कर बोलने लगी। यहाँ के मतावलंबियों को चार सरल नियमों का पालन करना होता है-
- धर्म के चार स्तम्भ - तप, शौच, दया तथा सत्य हैं।
इसी का व्यावहारिक पालन करने हेतु इस्कॉन के कुछ मूलभूत नियम हैं।
तप : किसी भी प्रकार का नशा नहीं। चाय, कॉफ़ी भी नहीं।
शौच : अवैध स्त्री/पुरुष गमन नहीं।
दया : माँसाहार/ अभक्ष्य भक्षण नहीं। (लहसुन, प्याज़ भी नहीं)
सत्य : जुआ नहीं। (शेयर बाज़ारी भी नहीं)
- उन्हें तामसिक भोजन त्यागना होगा (तामसिक भोजन के तहत उन्हें प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि से दूर रहना होगा)
- अनैतिक आचरण से दूर रहना (इसके तहत जुआ, पब, वेश्यालय जैसे स्थानों पर जाना वर्जित है)
- एक घंटा शास्त्राध्ययन (इसमें गीता और भारतीय धर्म-इतिहास से जुड़े शास्त्रों का अध्ययन करना होता है)
- 'हरे कृष्णा-हरे कृष्णा' नाम की १६ बार माला करना होती है।
योगदान
[संपादित करें]भारत से बाहर विदेशों में हजारों महिलाओं को साड़ी पहने चंदन की बिंदी लगाए व पुरुषों को धोती कुर्ता और गले में तुलसी की माला पहने देखा जा सकता है। लाखों ने मांसाहार तो क्या चाय, कॉफी, प्याज, लहसुन जैसे तामसी पदार्थों का सेवन छोड़कर शाकाहार शुरू कर दिया है। वे लगातार ‘हरे कृष्ण महामंत्र ’ का कीर्तन भी करते रहते हैं। इस्कॉन ने पश्चिमी देशों में अनेक भव्य मन्दिर व विद्यालय बनवाये हैं। इस्कॉन के अनुयायी विश्व में श्रीमदभगवद् गीता एवं सनातन संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते हैं।
चित्रावली
[संपादित करें]इन्हें भी देखें
[संपादित करें]बाहरी कड़ियाँ
[संपादित करें]Text is available under the CC BY-SA 4.0 license; additional terms may apply.
Images, videos and audio are available under their respective licenses.