For faster navigation, this Iframe is preloading the Wikiwand page for अंग्रेजी हटाओ आंदोलन.

अंग्रेजी हटाओ आंदोलन

यह लेख मुख्य रूप से अथवा पूर्णतया एक ही स्रोत पर निर्भर करता है। कृपया इस लेख में उचित संदर्भ डालकर इसे बेहतर बनाने में मदद करें

स्वतंत्र भारत में साठ के दशक में अंग्रेजी हटाओं-हिन्दी लाओ के आंदोलन का सूत्रपात राममनोहर लोहिया ने किया था। इस आन्दोलन की गणना अब तक के कुछ इने गिने आंदोलनों में की जा सकती है। लोहिया का मानना था की लोकभाषा के बिना लोकतंत्र सम्भव नहीं है। १९५७ से छेड़ी गयी इस मुहीम में १९६२-६३ में जनसंघ भी शामिल हो गया। लेकिन लोहिया जी के निधन, दक्षिण में हिन्दी-विरोधी आन्दोलन, राजनेताओं की राजनैतिक लालसाओं के कारण यह आन्दोलन सफल न हो सका।

समाजवादी राजनीति के पुरोधा डॉ॰ राममनोहर लोहिया के भाषा संबंधी समस्त चिंतन और आंदोलन का लक्ष्य भारतीय सार्वजनिक जीवन से अंगरेजी के वर्चस्व को हटाना था। लोहिया को अंगरेजी भाषा मात्र से कोई आपत्ति नहीं थी। अंगरेजी के विपुल साहित्य के भी वह विरोधी नहीं थे, बल्कि विचार और शोध की भाषा के रूप में वह अंगरेजी का सम्मान करते थे। हिन्दी के प्रचार-प्रसार में महात्मा गांधी के बाद सबसे ज्यादा काम राममनोहर लोहिया ने किया। वे सगुण समाजवाद के पक्षधर थे। उन्होंने लोकसभा में कहा था-

अंग्रेजी को खत्म कर दिया जाए। मैं चाहता हूं कि अंग्रेजी का सार्वजनिक प्रयोग बंद हो, लोकभाषा के बिना लोकराज्य असंभव है। कुछ भी हो अंग्रेजी हटनी ही चाहिये, उसकी जगह कौन सी भाषाएं आती है, यह प्रश्न नहीं है। इस वक्त खाली यह सवाल है, अंग्रजी खत्म हो और उसकी जगह देश की दूसरी भाषाएं आएं। हिन्दी और किसी भाषा के साथ आपके मन में जो आए सो करें, लेकिन अंग्रेजी तो हटना ही चाहिए और वह भी जल्दी। अंग्रेज गये तो अंग्रेजी चली जानी चाहिये।

१९५० में जब भारतीय संविधान लागू हुआ तब उसमें भी यह व्यवस्था दी गई थी कि 1965 तक सुविधा के हिसाब से अंग्रेजी का इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन उसके बाद हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया जाएगा। इससे पहले कि संवैधानिक समयसीमा पूरी होती, डॉ राममनोहर लोहिया ने 1957 में अंग्रेजी हटाओ मुहिम को सक्रिय आंदोलन में बदल दिया। वे पूरे भारत में इस आंदोलन का प्रचार करने लगे। 1962-63 में जनसंघ भी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल हो गया। लेकिन इस दौरान दक्षिण भारत के राज्यों (विशेषकर तमिलनाडु में) आंदोलन का विरोध होने लगा। तमिलनाडु में अन्नादुरई के नेतृत्व में डीएमके पार्टी ने हिंदी विरोधी आंदोलन को और तेज कर दिया। इसके बाद कुछ शहरों में आंदोलन का हिंसक रूप भी देखने को मिला। कई जगह दुकानों के ऊपर लिखे अंग्रेजी के साइनबोर्ड तोड़े जाने लगे। उधर 1965 की समयसीमा नजदीक होने की वजह से तमिलनाडु में भी हिंदी विरोधी आंदोलन काफी आक्रामक हो गया। यहां दर्जनों छात्रों ने आत्मदाह कर ली। इस आंदोलन को देखते हुए केंद्र सरकार ने 1963 में संसद में राजभाषा कानून पारित करवाया। इसमें प्रावधान किया गया कि 1965 के बाद भी हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी का इस्तेमाल राजकाज में किया जा सकता है।

‘अंग्रेजी हटाओ’ आंदोलन को उन दिनों यह कहकर खारिज करने की कोशिश की गई कि अगर अंग्रेजी की जगह हिंदी आयेगी तो हिन्दी का वर्चस्ववाद कायम होगा और तटीय भाषाएँ हाशिए पर चली जायेंगी। सत्ताधारियों ने हिन्दी को साम्राज्यवादी भाषा के के रूप में पेश कर हिन्दी बनाम अन्य भारतीय भाषाओं (बांग्ला, तेलुगू , तमिल, गुजराती, मलयालम) का विवाद छेड़ इसे राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए खतरा बता दिया। इसे देश जोड़क भाषा नहीं, देश तोड़क भाषा बना दिया। लोहिया ने इस बात का खंडन करते हुए कहा कि स्वाधीनता आंदोलन में हिन्दी ने देश जोड़क भाषा का काम किया है। देश में एकता स्थापित की है, आगे भी इस भाषा में संभावना है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि यदि हिंदी को राजकाज, प्रशासन, कोर्ट-कचहरी की भाषा नहीं बनाना चाहते तो इसकी जगह अन्य किसी भी भारतीय भाषा को बना दिया जाए। जरूरी हो तो हिन्दी को भी शामिल कर लिया जाए। लेकिन भारत की मातृभाषा की जगह अंग्रेजी का वर्चस्ववाद नहीं चलना चाहिए। [1]

लोहिया जब 'अंगरेजी हटाने' की बात करते थे, तो उसका मतलब 'हिंदी लाना' नहीं था। बल्कि अंगरेजी हटाने के नारे के पीछे लोहिया की एक खास समझदारी थी। लोहिया भारतीय जनता पर थोपी गई अंगरेजी के स्थान पर भारतीय भाषाओं को प्रतिष्ठा दिलाने के पक्षधर थे। 19 सितंबर 1962 को हैदराबाद में लोहिया ने कहा था,

अंगरेजी हटाओ का मतलब हिंदी लाओ नहीं होता। अंगरेजी हटाओ का मतलब होता है, तमिल या बांग्ला और इसी तरह अपनी-अपनी भाषाओं की प्रतिष्ठा।

उनके लिए स्वभाषा राजनीति का मुद्दा नहीं बल्कि अपने स्वाभिमान का प्रश्न और लाखों–करोडों को हीन ग्रंथि से उबरकर आत्मविश्वास से भर देने का स्वप्न था–

मैं चाहूंगा कि हिंदुस्तान के साधारण लोग अपने अंग्रेजी के अज्ञान पर लजाएं नहीं, बल्कि गर्व करें। इस सामंती भाषा को उन्हीं के लिए छोड़ दें जिनके मां बाप अगर शरीर से नहीं तो आत्मा से अंग्रेज रहे हैं।

दक्षिण (मुख्यत: तमिलनाडु) के हिंदी-विरोधी उग्र आंदोलनों के दौर में लोहिया पूरे दक्षिण भारत में अंगरेजी के खिलाफ तथा हिंदी व अन्य भारतीय भाषाओं के पक्ष में आंदोलन कर रहे थे। हिंदी के प्रति झुकाव की वजह से दुर्भाग्य से दक्षिण भारत के कुछ लोगों को लोहिया उत्तर और ब्राह्मण संस्कृति के प्रतिनिधि के रूप में दिखाई देते थे। दक्षिण भारत में उनके ‘अंगरेजी हटाओ’ के नारे का मतलब ‘हिंदी लाओ’ लिया जाता था। इस वजह से लोहिया को दक्षिण भारत में सभाएं करने में कई बार काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता था। सन १९६१ में मद्रास और कोयंबटूर में सभाओं के दौरान उन पर पत्थर तक फेंके गए। ऐसी घटनाओं के बीच हैदाराबाद लोहिया और सोशलिस्ट पार्टी की गतिविधियों का केंद्र बना रहा। ‘अंगरेजी हटाओ’ आंदोलन की कई महत्त्वपूर्ण बैठकें हैदराबाद में हुई।

तमिलनाडु की द्रविड़ मुनेत्र कड़गम पार्टी ने इस आन्दोलन के विरुद्ध 'हिन्दी हटाओ' का आन्दोलन चलाया जो एक सीमा तक अलगाववादी आन्दोलन का रूप ले लिया। नेहरू ने सन १९६३ में संविधान संशोधन करके हिन्दी के साथ अंग्रेजी को भी अनिश्चित काल तक भारत की सह-राजभाषा का दर्जा दे दिया। सन १९६५ में अंग्रेजी पूरी तरह हटने वाली थी वह 'स्थायी' बना दी गयी। १९६७ के नवम्बर माह में काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के छात्रनेता देवव्रत मजूमदार के नेतृत्व में 'अंग्रेजी हटाओ आन्दोलन' किया गया था जिसका असर पूरे देश पर पड़ा। उस समय इंजीनियरिंग के छात्र देवव्रत मजूमदार बीएचयू छात्रसंघ के अध्यक्ष थे। २८ नवम्बर १९६७ को मजूमदार के आह्वान पर बनारस में राजभाषा संशोधन विधेयक के विरोध में पूर्ण हड़ताल हुई। सभी व्यापारिक प्रतिष्ठान और बाजार बंद रहे और गलियों-चौराहों पर मशाल जुलूस निकले।

सन्दर्भ

[संपादित करें]

इन्हें भी देखें

[संपादित करें]

बाहरी कड़ियाँ

[संपादित करें]
{{bottomLinkPreText}} {{bottomLinkText}}
अंग्रेजी हटाओ आंदोलन
Listen to this article

This browser is not supported by Wikiwand :(
Wikiwand requires a browser with modern capabilities in order to provide you with the best reading experience.
Please download and use one of the following browsers:

This article was just edited, click to reload
This article has been deleted on Wikipedia (Why?)

Back to homepage

Please click Add in the dialog above
Please click Allow in the top-left corner,
then click Install Now in the dialog
Please click Open in the download dialog,
then click Install
Please click the "Downloads" icon in the Safari toolbar, open the first download in the list,
then click Install
{{::$root.activation.text}}

Install Wikiwand

Install on Chrome Install on Firefox
Don't forget to rate us

Tell your friends about Wikiwand!

Gmail Facebook Twitter Link

Enjoying Wikiwand?

Tell your friends and spread the love:
Share on Gmail Share on Facebook Share on Twitter Share on Buffer

Our magic isn't perfect

You can help our automatic cover photo selection by reporting an unsuitable photo.

This photo is visually disturbing This photo is not a good choice

Thank you for helping!


Your input will affect cover photo selection, along with input from other users.

X

Get ready for Wikiwand 2.0 🎉! the new version arrives on September 1st! Don't want to wait?